Sunday, March 21, 2010

कसूरवार कौन ?

अगर कोई गलत खबर न्यूज चैनल पर चल जाए तो क्या हो सकता है? शायद आपका जवाब हो कि, गलत खबर चलने पर न्यूज चैनल पर मानहानि का केस किया जा सकता है। लेकिन कोई व्यक्ति गरीब हो, असहाय हो, और उसके बाद न्यूज चैनल पर गलत खबर चलने के बाद आसपास के लोग उसे ‘बलात्कारी और वहशी’ जैसे शब्दों से उसे बुलाने लगें, अपने ऊपर लगे लांछन से घर के बाहर निकलने के काबिल ना रह जाए, ऐसी स्थिति में वो आदमी क्या करेगा... कभी सोचा है...जवाब बहुत मुश्किल है। राजधानी दिल्ली के एक पति पत्नी भी कुछ ऐसी ही दुविधा में थे और गलत खबर चलने का खामियाजा उन्होंने अपनी जान देकर चुकाया।



टेलीविजन मीडिया का स्वरूप बहुत बड़ा है। लोग भले ही न्यूज पेपर में छपी खबरें पढ़कर भूल जाएं लेकिन टीवी पर चली खबरें जल्दी ही दिमाग में बैठ जाती है। आम आदमी टीवी पर चली खबरों पर ज्यादा विश्वास कर लेता हैं। क्योंकि देखे सुने गए पर जल्दी यकीन होता है। इसलिए टीवी, आम लोगों को बहुत जल्दी प्रभावित कर लेता है--- कुछ ऐसा ही हमें टीवी पत्रकारिता की पढ़ाई के वक्त बताया गया था। ये पढ़ाई की बात रही लेकिन क्या टीवी पर खबर चलने का गलत प्रभाव भी उतनी ही जल्दी पड़ जाता है?
क्या किसी खबर के चलने से परिवार का आत्मसम्मान चकनाचूर हो सकता है।
जिस व्यक्ति को न्यूज चैनल आरोपी बता कर चला रही है वो क्या सच में आरोपी है?
क्या पीड़ित व्यक्ति ने रो रो कर जो रिपोर्टर को बताया वो क्या वाकई सच है?
कहीं पीड़ित व्यक्ति द्वारा खबर चलवाना एक साजिश तो नहीं है?
ये ऐसे सवाल है जिनपर गौर करना अक्सर रिपोर्टर भूल जाते हैं।
आज से करीब 4 साल पहले की बात है। उस दिन एक न्यूज चैनल की हेल्पलाइन पर 17-18 साल की एक लड़की ने फोन किया। लड़की फूट-फूट कर रो रही थी और अपनी आप-बीती बयां कर रही थी। लड़की ने बताया कि उसकी मां की मृत्यु हो चुकी थी लिहाजा उसके पिता ने पालन पोषण के लिए मौसी-मौसा के पास भेज दिया है। उसने बताया कि मौसी-मौसा ने उसे अपने घर में बंधक बना लिया है और अक्सर मौसा उसके साथ बलात्कार करता है। मौसा, दिल्ली के एक प्रतिष्ठित सरकारी संस्थान में कार्यरत थे। खबर वाकई हिला देने वाली थी। लड़की के रूंदन से किसी का भी दिल दहलना लाजमी था।
चैनलों में कॉम्पीटीशन ही था कि हर दिन एक ना एक प्रोमो स्टोरी, रिपोर्टर को देनी ही होती थी। प्रोमो इसलिए ज्यादा जरूरी होता था क्योंकि

तीन बेहतरीन चैनल्स के क्राइम प्रोग्राम एक ही टाइम पर यानि रात के 11 बजे आते थे। क्राइम प्रोग्राम की टीआरपी अक्सर नंबर 1 रहती थी, लिहाजा तीनों चैनल्स के क्राइम प्रोग्राम्स में एक्सक्लूसिव करने की होड़ लगी रहती थी।

तीन बेहतरीन चैनल्स के क्राइम प्रोग्राम एक ही टाइम पर यानि रात के 11 बजे आते थे। क्राइम प्रोग्राम की टीआरपी अक्सर नंबर 1 रहती थी, लिहाजा तीनों चैनल्स के क्राइम प्रोग्राम्स में एक्सक्लूसिव करने की होड़ लगी रहती थी। ऑफिस को उस दिन की प्रोमो स्टोरी मिल चुकी थी क्योंकि लड़की अपने मौसा पर बलात्कार और बंधक बनाने जैसा संगीन आरोप लगा रही है... तो इससे बेहतर क्या होगा। फटाफट एक रिपोर्टर को लड़की के पास रवाना किया गया। खबर के चलने (एयर) का टारगेट उसी दिन का था। लिहाजा रिपोर्टर को असाइनमेंट डेस्क से जल्दी खबर कवर करने की बार बार इन्स्ट्रक्शन मिल रही थी या यूं कहा जाए कि रिपोर्टर पर हर 10 मिनट बाद फोन कर कर के दबाव बनाया जा रहा था। बीच बीच में असाइनमेंट साथ ही अच्छा शूट करने के लिए बोल रहा था... कि लड़की को ऐसे चलाना...वैसे चलाना... रोते हुए कटवेज बनाना, आंख पोछते हुए कटवेज बनाना, प्रोमो स्टोरी है ज्यादा शूट करना, बलात्कार की पीड़ित है इसलिए ऐसा शूट हो जिससे उसका चेहरा ना दिखे... मौसी मौसा को कैमरे पर पकड़ने की कोशिश करना, कुछ ‘ड्रामा’ हो जाए तो अच्छा है.... वगैरा वगैरा।
रिपोर्टर लड़की द्वारा बताए गए घर पर पंहुच चुका था। उस वक्त घर पर मौसी मौसा मौजूद नहीं थे। न्यूज चैनल्स की गाड़िया देखकर मौहल्ले में खबर की आग की तरह फैल चुकी थी। आस पास के लोग भी तमाशबीन बनकर लड़की के घर पर पहुंच गए थे। लड़की ने रिपोर्टर को रो-रो कर अपनी पूरी दास्तान बता डाली।
ये सारी बातें मोहल्लेवाले भी सुन रहे थे। अपने आरोपों को सिद्ध करने के लिए उस लड़की ने शरीर पर पिटाई के तमाम निशान दिखाए। कहते हैं ना कि लड़कियों के चार आंसू देखकर दिल पसीज जाता है ....यही उन मोहल्ले वालों के साथ हुआ। कुछ पता हो या ना वो भी लड़की की हां में हां मिलाने लगे।
कुछ को तो टीवी पर आने का मौका मिला था...लिहाजा रिपोर्टर को कैमरे में बाइट तक दे डाली कि मौसी मौसा लड़की को पीटते थे। हमारे घर तक आवाज आती थी। “वो (मौसा) तो रामलीला में रावण का रोल करता था और असल जिंदगी में भी रावण ही बन गया”—लड़की का मौसा दिल्ली की एक रामलीला में रावण का रोल करता था। लेकिन सिर्फ रोने से ही आरोप सिद्ध नहीं होते लिहाजा रिपोर्टर ने सूझबूझ दिखाते हुए लड़की से उसकी मेडिकल रिपोर्ट या फिर पुलिस कंपलेंट दिखाने के लिए कहा। लेकिन लड़की ने रोते हुए ये बोल डाला कि भैया मुझे तो निकलने नहीं देते हैं कैसे जाऊं पुलिस के पास? चूंकि बलात्कार जैसे गंभीर विषय की खबर बिना पुलिस से क्रासचैक किए नहीं चलाई जाती। इस बीच रिपोर्टर के कई सवालों में उलझते देख उस लड़की ने एक-दो चैनल के लोगों को और बुला लिया।

उन दिनो रिपोर्टर से बार बार कुछ ‘ड्रामा’ करने की बात की जाती थी—हालांकि अब ये ट्रैंड लगभग खत्म हो गया है—तो रिपोर्टर ने सोचा कि क्यों ना पुलिस के पास इस दुखियारी लडकी को लेकर चला जाए... इससे रेप की खबर भी चल जाएगी और उस क्राइम प्रोग्राम का और नाम हो जाएगा

उन दिनो रिपोर्टर से बार बार कुछ ‘ड्रामा’ करने की बात की जाती थी—हालांकि अब ये ट्रैंड लगभग खत्म हो गया है—तो रिपोर्टर ने सोचा कि क्यों ना पुलिस के पास इस दुखियारी लडकी को लेकर चला जाए... इससे रेप की खबर भी चल जाएगी और उस क्राइम प्रोग्राम का और नाम हो जाएगा कि वो अबला और गरीब लोगों के लिए भी इंसाफ का काम करता है। यानि जब मौसा गिरफ्तार होगा तो ‘खबर का इम्पैक्ट’ भी चलाया जाएगा। बस फिर क्या था मीडियावाले पीड़ित लड़की को लेकर थाने पहुंच गये। शिकायत दर्ज करवाने में मदद की। लेकिन मौसा के खिलाफ एफआईआर और उसकी गिरफ्तारी तभी हो सकती थी जब लड़की के मेडिकल टेस्ट में ये बात साफ हो जाती कि वाकई उसके साथ कोई जोर जबर्दस्ती की गई है।
अब रिपोर्टर के पास कवर करने के लिए बस एक पक्ष बचता था—आरोपी मौसा का ‘वर्जन’ लेना। लेकिन मौसा-मौसी ने यहां एक गलती कर डाली। जब रिपोर्टर अपने कैमरे सहित उनके घर पहुंचा तो उन्होंने कैमरे के सामने ही लड़ना शुरु कर दिया। रिपोर्टर पूछता रह गया कि उनपर लगे आरोप सहित है या गलत लेकिन वे कैमरे से बचते रहे। मौसा-मौसी के इस व्यवहार से रिपोर्टर को भी कहीं ना कहीं लगने लगा कि वे शायद ‘कसूरवार’ है और इसीलिए कैमरे के सामने नहीं आना चाहता—चोर की दाढ़ी में तिनका। लेकिन यहां रिपोर्टर ने भी शायद एक गलती कर दी थी। वो सीधा कैमरा ऑन करके उनके घर में पहुंच गया था, जिसकी वजह से मौसा-मौसी बौखला गए और रिपोर्टर पर बिदक गए। अगर रिपोर्टर बिना कैमरा ऑन किए मौसा-मौसी के पास पहुंचता और फिर उनका पक्ष सुनके बाद (उनकी) बाइट लेता तो शायद आज ये लेख लिखने की जरुरत ना पड़ती।
अब रिपोर्टर को खबर का पूरा ‘मसाला’ मिल चुका था। आउटपुट प्रोड्यूसर ने विजुअल देखकर स्क्रिप्टिंग मौसा के खिलाफ ठोक कर लिखी थी। शाम को 7 बजे से चैनल पर प्रोमों भी धड़ाधड़ चल रहा था। ‘कलयुगी मौसा का कलंक… आज वो लड़की रोएगी… मौसा का पाप... देखिए रात 11 बजे।’ और भी ना जाने क्या-क्या। चैनल पर बार-बार ये सब ‘टीज’ किया जा रहा था। रिपोर्टर को बॉस की तरफ से वाहवाही मिल रही थी। बॉस की तरफ से बाकी रिपोर्टर्स को ऐसी ही खबर करने की नसीहत भी दे दी गई थी। रिपोर्टर पूरे ऑफिस मे ‘सीना चौड़ा’ करके घूम रहा था। 10 लोगों को रात खबर देखने के लिए एसएमएस भी भेज चुका था। दूसरे चैनल्स में क्राइम रिपोर्टर्स की हालत खराब थी। वो बार-बार हमारे चैनल की इस स्टोरी के बारे में जानने की कोशिश कर रहे थे।
सर्वश्रेष्ठ चैनल के रिपोर्टर्स की जमकर क्लास लग रही थी। कुछ को तो ईमेल करके स्टोरी छूटने के लिए उत्तर(explanation) मांगा जा रहा था। खैर रात के 11 बजे वो खबर चली...सभी ने तारीफों के पुल बाँध दिए। बॉस ने भी अनाउंस कर दिया था कि अगले दिन इस खबर को और पीटेंगे। फॉलोअप होगा, महिला आयोग से बात की जाएगी। न्यूज चैनल में काम करने की विडम्बना तो देखिए कि एक बार खबर चलने के बाद ना किसी ने उस लड़की के बारे में सोचा और ना ही उसके मौसा के बारे में। उस दिन का कुंआ खुद चुका था और पानी पिया जा चुका था। लेकिन क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगले दिन सुबह क्या हुआ ?
मीडिया के लिए काला अध्याय थी वो सुबह। खबर मिली कि मौसा और मौसी ने खुदकुशी कर ली और उन्होंने एक लंबा चौड़ा सुसाइड नोट छोड़ा था।
जिसमें अपने आप को निर्दोष बताया था और अपनी पूरी वेदना प्रकट की थी। ऑफिस के बॉस और रिपोर्टर के पैरों तले जमीन खिसक गई। सबकी धड़कनें बढ़ी हुईं थीं कि कहीं अपनी मौत का जिम्मेदार वो मीडिया को ना ठहरा गया हो। जैसे तैसे प्रोग्राम का सुबह का रिपीट बुलेटिन रोका गया।
अब न्यूज चैनल में दो फाड़ हो चुका था यानि दो ग्रुप हो गए थे। एक ग्रुप वो जिन्होंने ये खबर चलाई थी और दूसरे ग्रुप में वो चैनल थें जिनके रिपोर्टर को पिछली रात ये खबर कवर ना करने के एवज में explanation देना पड़ा था। अंदर की बात ये भी थी, कि सर्वश्रेष्ठ चैनल के क्राइम प्रोग्राम की टीआरपी, गलती करने वाले पॉप्युलर प्रोग्राम से कम आती थी। तो अब सर्वश्रेष्ठ चैनल को उस प्रोग्राम को नीचा दिखाने का मौका मिल चुका था। सुबह से ही उस चैनल्स के रिपोर्टर्स ने दनादन लाइव-चैट शुरू कर दिया। शाम तक सर्वश्रेष्ठ चैनल, खबर की हकीकत दिखाता रहा। अब तक वो लड़की भी कटघरे में खड़ी हो चुकी थी। मोहल्लेवाले भी मरने वाले पति-पत्नी के पक्ष में बोलने लगे थे। अब ये बात निकल कर आने लगी थी ...कि मौसी मौसा जब घर में नहीं होते थे तो लड़की का एक दोस्त घर में आता था। मौसी मौसा को पता चला... इस बात को लेकर लड़की की पिटाई होती थी।
अब तक खबर बिल्कुल उल्टी हो चुकी थी। लड़की के शरीर पर पड़े निशान की भी हकीकत सामने आ चुकी थी। एक दिन पहले तक उछलने वाले उस रिपोर्टर का भी मुंह लटक चुका था। क्योंकि वाहवाही करने वाले बॉस ने अब उल्टा रूख अपना लिया था। वो रिपोर्टर की रिपोर्टिंग पर तमाम सवालिया निशान लगाकर चिल्ला चुके थे। रिपोर्टर, बॉस और वो प्रोड्यूसर जिसने कॉपी लिखी थी... किसी से नजरें नही मिला पा रहे थे। रिपोर्टर की आंखे लाल थी। इन सबका दोषी वो खुद को ही मान रहा था। ऑफिस वाले सब सर पीट रहे थे। क्योंकि उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि एक खबर चलाने की जल्दबाजी दो लोगों की जान पर भारी पड़ जाएगी। हां ये बात जरुर है कि इस तरह की गलती कभी जानबूझ कर नहीं की जाती। लेकिन उस खबर के बाद से ही हर खबर के लिए (खास तौर से रेप से जुड़ी) रिपोर्टर से कई बार स्टोरी को लेकर सवाल-जवाब होने लगे। सवाल प्रोड्यूसर (स्क्रिप्ट राइटर) से किए जाने लगा। उन्हे दिशा-निर्देश दिया गया कि अगर किसी स्टोरी पर जरा भी संदेह हो तो तुंरत ‘गिरा’ दो। दरअसल, यहां केवल स्टोरी की विश्वसनीयता का सवाल नहीं था बल्कि रिपोर्टर और चैनल की विश्वसनीयता भी दांव पर लगी थी।
मौसी-मौसा की मौत ने इलैक्ट्रॉनिक मीडिया को सबक दे दिया था। कभी भी क्रॉसचैक किए बिना खबर चलाने का प्रतिकूल भी प्रभाव पड़ सकता है। आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों है भई, कि खबर की जल्दबाजी से लोगों की जान पर बन आए। वो टीवी रिपोर्टिंग की गलती का पहला बड़ा किस्सा था। लेकिन ये कहा जा सकता है कि उसके बाद से ही मीडिया का ‘डाउनफाल’ शुरु हो गया। आज से चार साल पहले मीडिया को हमेशा वाहवाही मिलती थी... लेकिन अब गालियां। टीवी न्यूज चैनल के लिए सिर्फ यही एक काला अध्याय नहीं है। इसके बाद एक न्यूज चैनल द्वारा चलाया गया फर्जी स्टिंग ऑपरेशन भी आया... और आरूषि मर्डर केस भी। न्यूज चैनल्स द्वारा हो रही गलतियों का ही अंजाम था कि सूचना प्रसारण मंत्रालय को नए नियम-कानून लाने पड़े। न्यूज चैनल्स ने अपनी एक संस्था गठित (एनबीए यानि न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन) कर दर्शकों को चैनल्स पर चलने वाले कंटेट के बारे में शिकायत दर्ज करने का एक फोरम दिया गया। (ये लेख मैंने मीडियामंचडॉटकॉम नाम की न्यूज पोर्टल के लिए 'मीडिया का काला अध्याय' नाम से लिखा था)

4 comments:

  1. I congratulate u for this endeavour . You have really done a great service by educating common -man about the horrific realities which often remain untold.

    ReplyDelete
  2. वेहतरीन पोस्ट.
    शाबास नलिनि.

    ReplyDelete
  3. "हमेशा की तरह झकझोर देने वाली रपट....अब तो मीडिया वालों से भी डर लगने लगा है........."
    प्रणव सक्सैना
    amitraghat.blogspot.com

    ReplyDelete
  4. Hi Nalini jee…
    I know I am a stranger to you, but on the contrary, as such you are not to me, as I always have been one among great admirers of your blog and it has become my regular practice to read your beautiful Hindi, though I am not from Hindi belt (me from Maharashtra) so please bear with my English as you know I simply cannot think to write in Hindi in equally brilliant manner like you do. Therefore, I feel as easy in English as anything while using English for correspondence. Nevertheless, I thoroughly enjoy reading Hindi (despite the facts there are some terms in your write up which I would wish to get the clarification, when time comes.)
    Well, collectively speaking I had earlier meeting (on TV I mean) with your “Talented Mr.Ripley” aka as Mr.Neeraj Rajput and no wonder he has his own impression on the minds of millions of watchers and when, by sheer accident, I encountered with your blog and read “Aarushi” feature, then only I realized your lovely relationship with Mr.Rajput. Well, you both are eligible to get the trophy of “Made for Each other Couple” and you brilliance drove me as if it is a compulsory object to read and study Hindi because of that “Shuddh Ghee” expressions you have presented, especially with the latest addition : “Kasoorwaar Kaun”. I tried to locate comment box, but failed to find one, so decided to relay my delight thru email only. Hope you will excuse me wholeheartedly for using the email route without proper introduction. But since you are in media zone, I am sure you are of welcome kind to such complimentary mails. Still, I think I must ask you to forgive me.
    Similarly, only last night I was watching/reading/listening to discussion on “Satyendra Dubey Murder case” and court’s verdict that came six years after that Kanpur IIT alumni’s brutal killing which related to political conspiracy. What exactly people, as whole, achieved by sending those three scapegoats for life imprisonment? I mean, I am totally in agreement with the family’s comment upon verdict, “Little interest in the case as no big fishes getting caught by CBI.” This is, no wonder, is the true face and fact about the investigation of such cases and legal system of our Mother India. (Very coincidently, last night, Star Plus was screening Ajay Devgan’s “Gangajal”….whether it was a coincidence or an act of deliberation to enlighten people on the political interference under such cases….both are related to Bihar…(Satyendra’s reporting to the then Vajpayee government about some dirty handshaking on GQ Project….and that fictional SP Amit Kumar’s attempting filth cleaning operation and Sadhu Yadav’s opposing him, using political pressures…..may be that too is a point to ponder.) I fear this “Dubey Mystery” too destined to go under the mattress without unearthing the true facts of the reason behind the murder of that brilliant fellow Satynedra Dubey.
    I would love to read something on this issue from you (of course, in Hindi) in the days to come.
    Have a scintillating Sunday among your dear ones. Do write….agar aapki samaysuchika aapko izzaat deti hai to….(wow, kya Hindi likhi hai maine !!!)

    Indraraj

    ReplyDelete

देश-दुनिया