Sunday, February 21, 2010

मीडिया के गुंडे !


...अंकल के साथ हो रही धक्का-मुक्की और गालियों की बौछार सुनते ही आंटी घर से बाहर निकली तो एक रिपोर्टर ने उन्हें ऐसा धक्का मारा कि दीवार में जाकर वो टकरा गई। अंकल-आंटी ने रिपोर्टर्स को गुंडा समझा और पुलिस को बुला लिया। बाहर खीजते रिपोर्टर्स को जब कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने ओबी (लाइव के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वैन) के उस तार को ही काट डाला, जिससे उस चैनल पर लाइव चल रहा था...
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से एक खबर आई कि आरूषि-हेमराज हत्याकांड की रिपोर्टिग से मीडिया को सबक लेना चाहिए। लेकिन क्या क्राइम रिपोर्टर या फिर न्यूज चैनल के लोग मानेंगे? बहस बहुत लंबी है और तकरीबन डेढ़ साल से चली आ रही है। जबसे 16 मई 2008 को आरूषि तलवार का बेरहमी से कत्ल किया गया था और अगले दिन सुबह शक किए जाने वाले नौकर हेमराज की भी लाश एल-32, जलवायु विहार, नोएडा से मिली थी। सभी न्यूज चैनल और अखबारवालों ने अपने अपने तरह से कयास लगाए।
न्यूज चैनल द्वारा हायर किए गए प्राइवेट जासूसों और फॉरेन्सिक एक्सपर्ट ने भी तफ्तीश में कोई कोर कसर नही छोड़ी। लेकिन आरूषि-हेमराज की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को छोड़कर शायद ही किसी को पता हो कि आरूषि का घर यानि एल -32 एक 'पिकनिक स्पॉट' बन चुका था। कई रिपोर्टर्स और चैनल के बॉस वहां केवल घूमने के लिए पहुंचते थे। लोकतंत्र का चौथा खंबा कहलाने वाले पत्रकारिता की असंवेदनशीलता कई बार साफ झलक रही थी।

नोट-
1. ये लेख सत्य घटनाओं पर आधारित है।

2. कोई भी पात्र काल्पनिक नहीं है।

3. गालियों की जगह बीप बीप का इस्तेमाल किया गया है।


तारीख थी 16 मई 2008… सुबह करीब साढ़े 8 बजे थे। आरूषि की हत्या की खबर मिलते ही लगभग सारे न्यूज चैनल के रिपोर्टर और स्ट्रिंगर्स एल-32 जलवायु विहार पंहुच चुके थे। तत्कालीन एसपी बहुत जल्दी नतीजे पर पंहुच गए और नौकर हेमराज, जो कि वारदात वाली सुबह से गायब था, उसके ऊपर ईनाम घोषित करके उसे ही कातिल करार दे चुके थे। आरूषि की लाश पोस्टमॉर्टम के लिए पंहुच चुकी थी। पिता राजेश तलवार और नूपुर तलवार स्तब्ध थे। आंखो में आंसू तो नहीं था लेकिन उन्हें देखकर अंदाजा लगाया जा सकता था कि उनके समझ में कुछ नहीं आ रहा था।
यही से मीडिया का तुक्का लगाना शुरू हुआ। चूंकि एसपी ने बाइट में ये कह दिया था कि तलवार के मकान में लूटपाट नहीं हुई थी लिहाजा लाइव चैट करने वाले रिपोर्टर्स अंदाजा लगा रहे थे कि क्या आरूषि के साथ बलात्कार हुआ... कही घर के नौकर ने मालिक से किसी बात का बदला लेने के लिए तो मासूम बच्ची की हत्या नहीं कर दी है। छेडछाड़ हुई या वो ऐसा कौन सा राज जानती थी जिसकी वजह से उसे रास्ते से हटाने के लिए हेमराज ने कत्ल कर डाला ... वगैरा-वगैरा।

सीन नंबर 1- पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पहले ही बलात्कार का दावा
उस वक्त मैं मौका ए वारदात पर नहीं थी बल्कि ये सब टीवी पर देख रही थी। टीवी पर इसलिए क्योकिं पिछली रात (यानि 15 मई 2008) को ही मैं जयपुर ब्लास्ट कवर करके लौटी थी। बाहर की कवरेज करके लौटी थी और जयपुर ब्लास्ट की अच्छी कवरेज करने की वजह से बास से तारीफ भी मिल चुकी थी... लिहाजा मेरा पूरा मूड बन गया था कि अब तो पूरे दो दिन छुट्टी मारूंगी। ये सब सोच ही रही थी कि फोन आ गया। कॉल असाइन्मेंट से था। हैलो भी नहीं बोल पाई थी कि उधर से आवाज आई...बॉस ने पूछा है कि आरूषि के साथ बलात्कार हुआ है या नहीं पता करो।
मैने सोचा, अजीब आदमी हैं... अभी लाश पोस्टमॉर्टम के लिए गई ही है। जबतक पीएम नहीं हो जाता, कोई नहीं बता सकता। “नहीं नहीं बॉस बहुत गुस्से में हैं एक तो ब्रेकिंग देर से हुई है... नलिनी पता लगा के बताओ... जल्दी।”
गुस्सा तो बहुत आया लेकिन फिर भी मैने तत्कालीन एसएसपी से बात की। उन्होनें बलात्कार की बात से साफ इंकार कर दिया। आरूषि की लाश पर लगी चोटों के बारे में कहा कि अक्सर अपने को बचाव करते वक्त ऐसी चोटें लग जाती है।
मैने ऑफिस में एसएसपी का वर्जन बता दिया। लेकिन असाइनमेंट और बॉस लोगों को यही लगता रहा कि दूसरे चैनल सही चला रहे हैं। लिहाजा ब्रेकिगं में आरूषि के बलात्कार की आशंका ही चली। मैं उस वक्त और हैरान हो गई जब मैने एक सहयोगी का फोनों सुना। ऐसा लग रहा था कि आरूषि का पोस्टमॉर्टम करने वाला डॉक्टर वही हो। अपने फोनों में उन्होने आरूषि के अंदरूनी और बाहरी दोनों ही चोटों के बारे में खुलासा कर डाला था। बताओ पोस्टमॉर्टम अभी हो ही रहा है... बलात्कार की आशंका।

सीन 2- अरे भाई दीपक चौरसिया स्पॉट पर हैं
अगले दिन (17 मई) सुबह ही पता चल गया कि आरूषि का हत्यारा समझे जाने वाले हेमराज की लाश भी पुलिस ने बरामद कर ली है। मानों चैनल में भूकंप आ गया। खबर लगातार बड़ी हो रही थी...मुझे भी छुट्टी कैंसिल करके आफिस पंहुचना पड़ा। चाहे जरूरत हो या ना हो हर चैनल के 2-3 रिपोर्टर्स (बाद के दिनों में ये संख्या 5-6 तक पहुंच गई थी) एक साथ जलवायु विहार पंहुच चुके थे। सब के सब केस के स्कूप ढूंढ रहे थे।
तभी न्यूज चैनल की जानी मानी शख्सियत दीपक चौरसिया स्पॉट पर नजर आए। अगर ब्लास्ट को छोड़ दिया जाए तो काफी सालों बाद दीपक जी को एक क्राइम की खबर पर देखा जा रहा था। अब बाकी के रिपोर्टर्स की हालत खराब। एक ने फटाफट ऑफिस में फोन लगाया.... “अरे भाई किसी और धुरंधर रिपोर्टर को भेजो, मेरे से तो नहीं संभल रहा है, कितना कुछ है करने को ... पता है दीपक चौरसिया खुद है... (बीप बीप) कहीं कुछ गड़बड़ हो गया तो सब हमारे माथे पर फूटेगा। थोड़ी ही देर में एक दूसरे चैनल के एक्जीक्यूटिव एडिटर नजर आने लगे। धीरे-धीरे करके सभी चैनल्स के सर्वेसर्वा जलवायु विहार ‘टहलने’ के लिये पहुंचने लगे। आनन फानन में आरूषि के माता पिता अगले ही दिन आरूषि का अस्थि-विसर्जन करने हरिद्वार पंहुच गए... ये बात किसी के गले नही उतर रही थी। लिहाजा इस बात पर तो कयास लगाए ही जा रहे थे कि क्यों तलवार परिवार ने इतनी जल्दबाजी की। अबतक पुलिस ने आरूषि की पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट का खुलासा कर दिया था और बात साफ साफ बता दी थी आरूषि के साथ कोई बलात्कार जैसी बात नहीं है और आरूषि की हत्या धारदार हथियार से देर रात को की गई है।
तमाम चैनल के रिपोर्टर्स गुटखा खाने और सिगरेट पीने में गप्पबाजी ही कर रहे थे कि एक जाने माने सीनियर क्राइम रिपोर्टर ने आरूषि के घर से छत तक की “17 सीढियों” को भी गिन डाला। एक वॉकथ्रू के जरिए पुलिसिया तफ्तीश पर भी सवालिया निशान लगा डाले। बस फिर क्या था जैसे ही वो वॉकथ्रू चला, सब चैनलों में हंगामा हो गया। अधिकतर रिपोर्टर सीढ़ी पर नजर आ रहे थे... धक्का मुक्की... गाली गलौच के बीच लगभग सारे चैनल के लोगों ने एक एक वॉकथ्रू किया।

सीन नंबर 3- बुजुर्गों में दहशत
जैसा कि मैने आपको पहले बताया कि बड़ी खबर होने के नाते एक चैनल के 5-6 रिपोर्टर जलवायु विहार में रहते थे। यानि 100 से ज्यादा रिपोर्टर और कैमरामैन मौका ए वारदात पर होते थे। अब चैनल के बॉस लोगों का भी आना शुरू हो चुका था। सबसे पहले एक हिंदी न्यूज चैनल के एडिटर स्पॉट पर पंहुचे। उन्होंने अपनी तऱह से तफ्तीश शुरू की। लेकिन उनके सफेद बाल देखकर एक महिला रिपोर्टर को धोखा हो गया और वो उनकी ही बाइट लेने पहुंच गई कि अंकल इलाके में दोहरी हत्या होने से आप बुजुर्गों में कितनी दहशत है। दरअसल, जब भी कोई बड़ी खबर होती है तो चैनल का दबाब रहता है कि “साईड” स्टोरी ढूंढो। ऐसे में रिपोर्टर के लिए सबसे आसान तरीका है आस-पड़ोस के लोगों का वॉक्सपॉप (एक मुद्दे पर ढेर सारी बाईट या ये कहे कि अलग-अलग लोगों का रिक्शन)।

सीन नंबर 4---रांग नंबर
इस बीच मेरे एक सहयोगी ने आरूषि के पिता राजेश तलवार, आरूषि और नूपुर तलवार की मोबाइल डिटेल निकाल ली थी। जिस रात हत्या हुई थी उसकी सुबह एक लैंडलाइन फोन से आरूषि के मोबाइल पर फोन आया और कुछ सेकेंड के बाद डिसकनेक्ट हो गया। एक वरिष्ठ सहयोगी ने जल्द ही खुलासा कर दिया किया कि वो नंबर नोएडा के ही एक डेयरी के पास से आया है। आनन फानन में चैनल में एक्सक्लूसिव बैंड के साथ बड़ी बड़ी ब्रेकिंग चलानी शुरू हुई... कि आखिर किसने किया आरूषि के मोबाइल पर फोन.... वही कातिल तो नहीं था.... क्या जानना चाहता था वो कातिल। लगातार एक्सक्लूसिव करने वाले इस रिपोर्टर का लाइव चैट और एक दूसरे वरिष्ठ रिपोर्टर का फोनों चल रहा था। करीब आधा घंटे तक ये खबर ‘पीट-पीट’ कर चलती रही। तभी मेरे पास एक फोन आया... जिसका फोन आया उधर से एक आदमी गुस्से से चिल्ला रहा था। आरूषि के ताऊ दिनेश तलवार का फोन था। उन्होने चैनल पर केस कर डालने की धमकी दे डाली। मैने भलाई समझते हुए अपना फोन बॉस को सुनने के लिए दे दिया। दरअसल बार बार जिस नंबर को कातिल का नंबर बताया जा रहा था वो किसी और का नहीं बल्कि दिनेश तलवार के घर का नंबर था। दिनेश तलवार से माफी भी मांगी गई और जल्दी जल्दी ये खबर गिराई गई। इस तरह की बेवकूफी तभी होती है जब क्राइम रिपोर्टर बिना क्रॉसचैक किए खबर चलाने में लगा रहता है।

सीन 5- अफवाहों का दौर
चौबीसों घंटे रिपोर्टर आरूषि के घर पर गिद्ध जैसी नजर गड़ाए रहते थे। अब कवरेज करते करीब एक हफ्ते से ज्यादा हो चुके थे लिहाजा आसपास के लोगों से भी रिपोर्टर जान पहचान बना चुके थे। जिस चैनल के रिपोर्टर-कैमरामैन के लिए उनके ऑफिसवाले खाना और पानी भिजवा देते थे... उनके लिए कोई दिक्कत नहीं थी। लेकिन जिनके ऑफिस से नहीं आता था उनमें से कुछ रिपोर्टर्स को आरुषि के पड़ोसी खाना पानी दे देते थे। पड़ोसी भी रिपोर्टर को कुछ खिलाने के एवज में रिपोर्टर्स से अंदर की बात निकलवा लेते थे। लेकिन ये अंदर की बात कम और अफवाहे ज्यादा होती थी। पड़ोसी भी अफवाहों का दौर गर्म करके रखते थे।

सीन 6-पान का पीक या खून का धब्बा
अबतक नोएडा पुलिस को ना तो आला-ए-कत्ल (हत्या में इस्तेमाल किया गया हथियार) मिला था और ना ही कोई सुराग। ये शायद पहला मौका था जब क्राइम रिपोर्टर्स की डिक्शनरी में “आला-ए-कत्ल” शब्द का इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जाने लगा। शक लगातार तलवार दंपत्ति पर गहराता जा रहा था। रिपोर्टस को भी स्पॉट पर कुछ ज्यादा करने को नहीं मिल रहा था। तभी सर्वश्रेष्ठ चैनल के रिपोर्टर की नजर तलवार साहब के बंद पड़े गैराज पर गई। चूंकि सब उस वक्त ‘जेस्म बॉन्ड’ बने हुए थे तो गैराज में झांक कर देखा। बस उस दिन एक शगूफा छोड़ा गया कि उस बंद गैराज में कुछ खून से सना पड़ा था। फिर क्या था नोएडा पुलिस की धज्जियां उड़नी शुरू। धड़ाधड़ ब्रेकिंग न्यूज और लाइव चैट शुरू। चूंकि ये दोहरा हत्याकांड बहुत बड़ा हो चुका था तो कान्सटेबल क्या नोएडा पुलिस का इन्स्पेक्टर भी उस बंद गैराज को खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। आनन फानन में एसपी सिटी और कुछ फॉरेन्सिक एक्सपर्ट को बुलाकर गैराज खुलवाया गया। मुझे अच्छे से याद है कि रिपोर्टर्स फॉरेन्सिक एक्सपर्ट को धकिया कर खुद ही अंदर घुस गए। जिस रिपोर्टर के हाथ में जो आ रहा था वो उस गैराज से उठा रहा था। किसी के हाथ में आरूषि की बचपन की डायरी हाथ में लगी तो दूसरे चैनल्स के रिपोर्टर ने छीना छपटी शुरू कर दी। और हां वो गैराज में खून से सना कुछ भी नही था... पता चला वो पान मसाले की पीक थी। लेकिन क्राइम रिपोर्टर की तो उस दिन की “दिहाड़ी” पूरी हो चुकी थी।

सीन 7- आईजी की प्रेस कॉंन्फ्रैंस
मेरठ जोन के आईजी की प्रेस कॉन्फ्रैंस भला कोई कैसे भूल सकता है। दरअसल, आरुषि हत्याकांड़ के विवाद की जड़ यही प्रेस कॉन्फ्रैंस थी। या यूं कहे कि सारे विवाद इसी प्रेस-वार्ता के बाद से ही शुरु हुए। नोएडा पुलिस ने आरुषि के पिता डाक्टर राजेश तलवार को गिरफ्तार कर आनन-फानन में मीडिया के सामने मामला को सुलझाने का दावा कर डाला। चूंकि मामले ने तूल पकड़ रखा था। विदेशी अखबार और मीडिया तक में मामला आ चुका था। इसलिए, नोएडा के एसएसपी ने आईजी साहब को मीडिया को संबोधन करने के लिए आगे कर दिया। अक्सर, ऐसा ही होता है। जितनी बड़ी प्रेस-वार्ता उतना ही बड़ा अधिकारी। लेकिन शायद आईजी साहब ने एसएसपी या दूसरे पुलिस अधिकारी से देश की सबसे बड़ी मर्डर मिस्ट्री से जुड़े तथ्य भी ठीक से नहीं सुने थे। नतीजा, प्रेस कॉन्फ्रैंस शुरु होते ही हंगामा मच गया। आईजी साहब बार-बार आरुषि का नाम कुछ (सुरुचि-सुरुचि) और बोल देते। फिर हत्या की वजह जो उन्होने सार्वजनिक तौर पर कही उसे लेकर बबाल हो गया। किसी लड़की और महिला के चरित्र को लेकर उन्होने जो वजह गिनाने शुरु की तो मानों भूचाल आ गया। मामले को सुलझाने का दावा भरने के बाबजूद, उत्तर प्रदेश सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी। वो बात और है कि यू पी पुलिस के अधिकारी अब भी दबी जुबान में यही बात कहते सुने जा सकते है कि सीबीआई भी घूम-फिरकर वही पहुंच रही है जहां नोएडा पुलिस पहुंची थी—यानि राजेश तलवार पर। हाल ही में सीबीआई ने भी आरुषि के पिता, राजेश तलवार और मां, नूपुर तलवार का नारको-टेस्ट कराया है। लेकिन मेरठ के आईजी साहब ने वजह तो भले ही सही बताई हो, लेकिन उनके बताने का तरीका गलत था। एक सीनियर आईपीएस अधिकारी को इतना तो समझना चाहिए कि दुनियाभर की मीडिया के सामने वो कैसे एक लड़की, महिला, माता-पिता, नौकर और अंकल-आंटी के चरित्र को लेकर अंटशंट बक सकता है। चूंकि सभी चैनल्स इस पीसी (प्रेस कॉन्फ्रैस) को लाइव काट रहे थे (यानि सीधा प्रसारण) उसमें एडिटिंग की गुंजाइश बिल्कुल नहीं था। यानि सभी चैनल्स, आईजी साहब के भोपू के तौर पर इस्तेमाल किए जा रहे थे। जो आईजी साहब बोल रहे थे, वही पूरी दुनिया सुन रही थी और देख रही थी। आईजी साहब का बाद में इस बयानबाजी को लेकर ट्रांसफर कर दिया गया था।

सीन 8-अश्लील एमएमएस
आईजी साहब ने पीसी खत्म की नहीं कि एक चैनल (जो कुछ महीने पहले ही लांच हुआ था) ने ‘आरुषि का एमएमएस’ दिखाना शुरु कर दिया। इस एमएमएस के जरिए चैनल क्या बताना चाहता था, ये आज तक साफ नहीं हो सका है। वो, आईजी के इस बयान पर मोहर लगाना चाहता था कि वाकई मरने वाली लड़की का चरित्र ठीक नहीं था और उसके पिता ने शायद इसी वजह से पहले अपनी ही बेटी की हत्या नौकर (हेमराज) के हाथों करवा डाली—और फिर खुद नौकर को ठिकाने लगा दिया। या ये कि, इस एमएमएस का हत्याकांड से कोई नाता था। हां, ये बात जरुर है कि बाद में ये बात साफ हो गई कि एमएमएस में दिखाई जाने वाली लड़की आरुषि नहीं कोई और थी।

सीन 9-तलवार दंपत्ति की चुप्पी
इस पूरे मामले को कही ना कही खुद तलवार दंपति ने ही विवादों में डाल डाल दिया था। दरअसल, हत्या के बाद से ही तलवार दंपत्ति के साथ-साथ उनके करीबी और रिश्तेदार तक चुप्पी साधें हुए थे। ऐसे में मीडिया ने अटकले लगाने को जो दौर शुरु किया वो आजतक जारी है। वैसे चुप्पी साधना कोई गलती नहीं है। ये हर आदमी की अभिव्यक्ति पर है कि वो चैनल से बात करे या नहीं। उसपर किसी भी तरह का दबाव नहीं डाला जा सकता है—भले ही वो कितना बड़ा कसूरवार ना हो। तलवार दंपत्ति ने पूरे मामले पर तभी जुबान खोली जब नोएडा पुलिस ने राजेश तलवार को अपनी ही बेटी और नौकर हेमराज की हत्या का आरोपी ठहराते हुए गिरफ्तार कर लिया था।

सीन 10-अनीता दुर्रानी ने सुसाइड किया
टीवी और अखबारों के पत्रकारों के साथ साथ अब पुलिस को भी यही लगने लगा कि कातिल राजेश तलवार हैं। मेरठ के आईजी ने प्रेसकॉन्फ्रेंस में केस का खुलासा भी कर दिया कि राजेश तलवार ने अनीता दुर्रानी के साथ हुए अवैध संबंधों के चक्कर में आरूषि और हेमराज को रास्ते से हटा दिया। उस दिन तो दिनभर चैनलों पर पुलिस की ही थ्योरी चलती रही। हम सभी को ऐसा लगा कि अब शायद केस खत्म हुआ लेकिन नहीं, रोज रोज नई डेवलेपमेंट होती जा रही थी। इसलिए अभी भी पत्रकारों का जमावड़ा जलवायु विहार में था। ज्यादा कुछ करने को था नहीं तो अधिकतर रिपोर्टर्स चाय की चुस्की के साथ गप्पे मार रहे थे। इसी बीच एक क्राइम रिपोर्टर ने शगूफा छोड दिया कि पुलिस की थ्योरी से गमगीन ‘अनीता दुर्रानी ने सुसाईड’ कर लिया है। ये बात सारे रिपोर्टर हंसी मजाक में कर रहे थे कि ‘सर्वश्रेष्ठ चैनल’ की एक महिला पत्रकार ने चुपचाप जाकर खबर ब्रेक कर दी कि अनीता दुर्रानी ने सुसाइड कर लिया है। चूंकि खबर बड़े चैनल पर ब्रेक हुई थी तो हम सभी के फोन घनघनाने शुरू हो गए। ऐसा ही हुआ था आरुषि-हेमराज हत्याकांड की रिपोर्टिंग के दौरान। क्या रिपोर्टर और क्या न्यूज चैनल्स...सभी ब्रैकिंग न्यूज जल्द से जल्द चलाना चाहते थे। नतीजा...अनीता दुर्रानी का सुसाइड !

सीन 11-मीडिया के गुंडे
नोएडा पुलिस की जांच पर सवालिया निशान लगाते हुए नूपुर तलवार की अर्जी पर मामले की जांच अब सीबीआई के हवाले थी। सीबीआई ने नूपुर तलवार के कंपाउंडर कृष्णा और अनीता दुर्रानी के नौकर राजकुमार को हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू की। अब जब कृष्णा पर सीबीआई ने कत्ल का शक जताया।
कृष्णा के घरवालों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेन्स की थी। कृष्णा और उसका परिवार आरूषि के घर से महज 50 कदम की दूरी पर ही एक रिटायर्ड आर्मी ऑफिसर के घर में रहता था। प्रेस-कॉन्फ्रेन्स रिटायर्ड आर्मी अफसर के घर में ही रखी गई। सभी चैनल उस पीसी को लाइव काटना चाहते थे... लेकिन कमरा इतना छोटा था कि पॉसिबल नही था। ऐसे में एक चैनल की तेज तर्रार महिला पत्रकार अपने कैमरामैन के साथ कमरे में घुस गई और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। (उसकी ये मंशा थी कि सिर्फ ये पीसी एक्सक्लूसिव उसी के चैनल पर चले) बस फिर क्या था भाईलोगों को ये बात बुरी लग गई। कृष्णा के परिवार वालों का लाइव इंन्टरव्यू ज्यों ही उस अंग्रेजी चैनल पर चला...बाकी चैनल के रिपोर्टस के फोन घनघनाने शुरू हो गए। कई चैनल के बॉस लोगों ने अपने रिपोर्टर को गाली देनी शुरू कर दी... बीप....बीप... अगर अपने यहां लाइव नही चला तो नौकरी से निकाल दूंगा। बीप बीप...उस चैनल पर कैसे चल रहा है. बीप.... खा खा कर “घोरा होते जा रहे हो गधे।” अधिकतर रिपोर्टर्स की ऐसे ही क्लास लग रही थी। बस फिर क्या था। कुछ रिपोर्ट्स जिनको उनके ऑफिस से फटकार लग रही थी उन्होने कमरे के दरवाजे को धक्का देना शुरू कर दिया। अंदर बैठी महिला रिपोर्टर को धमकाना शुरू कर दिया... बीप बीप... आज तू इस कमरे से निकल कर दिखा... घर भी नहीं जा पाएगी.. बीप। उस ‘ढीठ’ लड़की ने भलाई इसी मे समझी की दरवाजा बंद ही रखा जाए। बाहर खड़े रिपोर्टस का पारा हाई। सबने दरवाजा तोड़ना शुरू कर दिया। दरवाजा टूटते देख 75 साल के बुजुर्ग घर से बाहर निकले...तो रिपोर्टस ने आव देखा ना ताव उनके साथ गाली गलौच पर उतर आए... बुढढे आज ही मरेगा तू... बीप बीप... तेरा घर तहस नहस कर देंगे। अंकल के ऊपर इतनी गालिया सुनते आंटी भी घर से निकली तो एक रिपोर्टर ने उन्हें ऐसा धक्का मारा कि दीवार में जाकर वो टकरा गई। अंकल-आंटी ने रिपोर्टर्स को गुंडा समझा और पुलिस को बुला लिया। बाहर खीजते रिपोर्टर्स को जब कुछ नहीं सूझा तो उन्होंने ओबी (लाइव के लिए इस्तेमाल की जाने वाली वैन) के उस तार को ही काट डाला, जिससे उस अंग्रेजी चैनल पर लाइव चल रहा था... बीप बीप... अब देखते हैं कैसे लाइव चलता है.. बीप बीप। जब अचानक उस अंग्रेजी चैनल पर प्रेसकान्फैंस का लाइव प्रसारण रूक गया तो महिला रिपोर्टर ने दरवाजा खोल दिया। तब फिर क्या था सब रिपोर्टर कृष्णा के घर में घुस गए... दे ठेलम ठेल... धक्का मुक्की, जूतम-पैजार, एक रिपोर्टर तो कृष्णा की बहन के ऊपर ही गिर गया। किसी के कपड़े फटे तो किसी को मोबाइल टूटा। हर चैनल वाला कृष्णा की बहन को अपने चैनल पर लाइव ले जाने के चक्कर में था। ये खींचतान करने में एक गर्भवती रिपोर्टर भी पीछे नहीं थी। हैरानी बात ये थी कि ये ठेलम ठेल में लाइव चल रही थी। चैनल के ऑफिस में बैठे बॉसेज को भी यही उम्मीद थी कि कब कृष्णा के परिवार वाले उनके चैनल को लाइव देगें। बस ऐसे में एक न्यूज चैनल (इंडिया टीवी) ने अकलमंदी दिखाई कि उसके मैनेजिंग एडिटर ने जब ये हंगामा और पत्रकारों का ये रूप देखा तो उसने रिपोर्टर्स के शक्ल पर गोल घेरा करके तीर के जरिए ये चलाना शुरू कर दिया..“ये हैं मीडिया के गुंडे”।

सीन 12-चैनल की वॉल पर दूसरे चैनल के रिपोर्टर
धीरे धीरे जब मीडिया की नंगई सामने आने लगी...ये कहा जाए तो ज्यादा सही रहेगा कि जब एक न्यूज चैनल ने अपनी टीआरपी के लिए दूसरे चैनल के लोगों को गलत ठहराया गया तब जाकर दूसरे चैनल वाले होश में आए। सब क्राइम रिपोर्टर्स को सभ्यता से पेश आने की हिदायद दी गई।
लेकिन कृष्णा के मकान मालिक और उसके परिवार वालों से बदसलूकी के बाद भी कुछ रिपोर्टर्स और उनके बॉस लोगों को शर्म नहीं आई। वो संवाददाता अपना बखान ऐसे कर रहे थे जैसे कि दूसरे चैनल का लाइव प्रसारण रोक कर कोई जंग जीत ली हो। लेकिन ये सिलसिला सिर्फ एक दिन का ही नहीं था। अगले दिन फिर मीडिया के लोगों ने ऐसा ही कुछ किया। अगले दिन फिर जब कृष्णा के घरवालों ने प्रेस कॉन्फ्रैन्स की तो नजारा फिर गाली गलौच और धक्कामुक्की वाला था। सब एक्सक्लूसिव करने में लगे थे लेकिन साथ ही ये भी खयाल था कि अगर एक का नहीं होगा तो किसी का नहीं होने देंगे। इस बार हंगामा इतना था कि जी न्यूज पर स्टार न्यूज का रिपोर्टर और आईबीएन 7 पर आजतक का रिपोर्टर दिख रहा था।

सीन 13- इंटरव्यू के लिए एसएमएस से धमकी
लगातार दो दिनों से इलैक्ट्रॉनिक मीडिया द्वारा किए जा रहे हंगामे को कुछ हिंदी अखबारों ने भी खूब जमकर फोटो सहित छापा। न्यूज चैनल्स की बदनामी होते देख लगभग सभी चैनल के बॉस लोगों ने ये संयम रखने की हिदायत दी। लेकिन साथ ही वो आरूषि केस में एक्सक्लूसिव भी चाहते थे। बार बार फोन कर कर के अपने रिपोर्ट्स को कृष्णा के परिवार को ऑफिस में लाइव के उठा लाने की बात भी करते थे। अब सैकड़ों रिपोर्टर्स के बीच कृष्णा के परिवार को एक्सक्लूसिव लाइव पर लाना संजीवनी बूटी लाने जैसा ही था।
ऐसे में (आजतक को पहली बार तीसरे नंबर पर धकेलने वाले) इस चैनल के एक क्राइम रिपोर्टर ने एक बहुत गलत तरीका अख्तियार कर लिया। उस रिपोर्टर ने कृष्णा के घरवालों को एसएमएस के जरिए इन्टरव्यू ना देने के एवज में धमकाना शुरू कर दिया। एक के बाद एक वो कृष्णा के घरवालों को धमकी भरे एसएमएस करता। लेकिन जब ये बात चैनल के अधिकारियों को पता चली तो उस रिपोर्टर को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा।

सीन 14-आरुषि का भूत!
चाहे दिन का उजाला हो या देर रात, रिपोर्टर 24 घंटे आरूषि के घर के सामने खडे़ रहते थे।
इस उम्मीद में कहीं सीबीआई की टीम दोबारा ना आ जाए या फिर किसी की गिरफ्तारी ना हो जाए। एक चैनल के रिपोर्टर को तो फोबिया हो गया था। वो वही गाड़ी में सोया हुआ था अचानक आरूषि आरुषि करके चिल्लाने लगा। उसके आंख बंद करते ही आरूषि उसके सपने में आती थी... ना सिर्फ आती थी बल्कि कत्ल की पूरी वारदात को रिक्रिएट करके बताती थी।

सीन 15- अपनी ढपली अपना राग
पहले नोएडा पुलिस और बाद में सीबीआई के मामले की ‘गुत्थी को सुलझाने’ के दावे के बाबजूद हर रिपोर्टर और हर चैनल कत्ल से जुड़ी थ्योरी दिखाने में तल्लीन था। कोई तलवार दंपति के पूर्व नौकर विष्णु को हत्यारा बता रहा था तो कोई वाइफ स्वैपिंग का राग अलाप रहा था। मजे की बात ये थी कि जो थ्योरी चैनल्स पर चलती थी, पुलिस और सीबीआई की तफ्तीश की दिशा भी उसी ओर घूम जाती थी। मानो पुलिस और सीबीआई भी सभी चैनल्स को 24X7 वॉच कर रही थी। किसी चैनल ने चला दिया कि आरुषि के कत्ल का वक्त रात नहीं दिन था। किसी ने प्रेस-कांफ्रेस में आईजी साहब से पूछ डाला कि आरुषि का पोस्टमार्टम दुबारा हो सकता है क्या। वो भी तब जब कि आरुषि का अंतिम-संस्कार हो चुका था।

सीन 16-खूनी पंजा
जलवायु विहार के जिस फ्लैट की छत पर नौकर हेमराज की लाश मिली थी, वहां एक खून से सने पंजे का निशान था। कयास लगाया जा रहा था कि ये किस का पंजा है---हेमराज का या फिर खूनी का। ये पंजा इस हत्याकांड मे इतना चर्चित हुआ कि एक चैनल के एंकर ने अपना एक हाथ लाल रंग से रंगकर छत से एंकरिंग करने लगा। बाद में जब सीबीआई ने दीवार से इस पंजे को काटकर निकाला तो दिनभर पंजे को दीवार से काटने का विजुअल ही चलता रहा। ये बात और इस पंजे की काटने को लेकर भी कई चैनल्स भी हंगामा हुआ। दरअसल, एल-32 फ्लैट के आस-पास के एरिया को सीबीआई ने मीडिया के लिए बंद कर दिया था। सिर्फ एक चैनल का रिपोर्टर और कैमरामैन एल-32 फ्लैट के सामने वाली छत पर किसी तरह चढ़ गया और सीबीआई के हरएक एक्शन को अपने कैमरे में कैद कर लिया। बस जैसे ही पंजे के काटने का विजुअल चैनल पर चला, सब जगह हड़कंप मच गया।

सीन 17-सीबीआई का गूफअप
आरुषि हत्याकांड की तफ्तीश का जिम्मा जब सीबीआई को दिया गया तो लगा कि अब इंसाफ हो ही जाएगा। लेकिन सीबीआई ने तो पूरे मामले को और उलझा कर रख दिया। कभी राजेश तलवार को आरोपी बनाया, तो कभी नौकरों और कंपाउडरो को। रिपोर्टर और न्यूज चैनल भी उसी भाषा में बोलते थे जो सीबीआई बोलती थी। धीरे-धीरे सीबीआई की असलियत भी सबके सामने थी। नतीजा के डेढ़ साल बीत जाने के बाद भी देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी अंधेरे में ही हाथ-पांव मारते दिखाई दे रही है। ऐसे में जब भी सीबीआई ‘कुछ’ करती है तो वो न्यूज चैनल्स में हेडलाइन बन जाती है---कभी आरुषि का मोबाइल हाथ लगना, तो कभी तलवार दंपत्ति का नारको-टेस्ट इत्यादि-इत्यादि।
लेकिन एक बात जरुर है कि आरुषि हत्याकांड इस देश के न्यूज चैनल्स और रिपोर्टर्स के लिए एक सबक बन गया है कि अभी भी वक्त है सुधरना है तो सुधर जाओ वर्ना सुप्रीम कोर्ट का डंडा चलने में देर नहीं लगेगी।

Monday, February 1, 2010

झुठ (या झूठ) का सच


हर न्यूज चैनल में राजपाल यादव जैसे लोग मौजूद रहते हैं...जो ना सिर्फ चापलूसी में यकीन रखते हैं बल्कि चैनल्स में बॉस लोगों की क्या प्लानिंग चल रही हैं... इन्क्रीमेन्ट हो रहा है या नहीं, एक और चैनल खुल रहा है, कितने लोगों को चैनल से निकाला जा रहा है.... बाप रे बाप ये सारी गॉसिप्स के पिटारे को वो ढोता रहता है...
रण फिल्म रिलीज होने और देखने के बाद, अब समझ आ रहा है कि मुंबई हमले के फौरन बाद रामगोपाल वर्मा, रितेश देशमुख के साथ ताज होटल क्यों पहुंच गए थे। उस वक्त काफी बवाल हुआ था। रितेश के पिता और महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री, विलासराव देशमुख को भी इस 'विजिट' के लिए दंश झेलना पड़ा था। उस वक्त ये बात साफ नहीं हो पाई थी कि रामू का वहां क्या काम ? लेकिन रण देखकर सब साफ हो गया।

कल रण देखने का मौका मिला। रण फिल्म का चस्का इस वजह से ज्यादा था क्योंकि ये फिल्म न्यूज चैनल की वर्किंग को लेकर बनी थी। फिल्म के प्रमोशन में अमिताभ बच्चन और रामगोपाल वर्मा तमाम न्यूज चैनल्स में घूमे भी थे। लेकिन हैरानी की बात ये है कि रामू ने पिक्चर बनने के बाद ही क्यों न्यूज रूम का दौरा किया... अगर पहले करते तो शायद फिल्म और भी बेहतर बन सकती थी। कम से कम फिल्म में इंडिया-24 पर चलने वाली ब्रेकिंग न्यूज और टिकर के लिखने में तो गलतियां नहीं होती--जैसे, झुठ, अतूल, फिसदी...अब तो आप को समझ आ ही गया होगा ना कि ब्लॉग के टाईटल में झूठ को 'झुठ' क्यों लिखा है। लेकिन फिल्म में कई ऐसी बातें है जो वाकई न्यूज चैनल्स में होती हैं। थीम अच्छा है।
शुरूआत से ही रामू ने ये दिखाने की कोशिश की कि न्यूज चैनल पर 3Cs भारी है... 3C मतलब क्राइम, सिनेमा (या सिलेब्रेटी) और क्रिकेट। रामू ने चैनल की नब्ज सही पकड़ी क्योंकि अधिकतर न्यूज चैनल्स में ज्यादा टाइम तक यही खबरें भरी पड़ी रहती हैं। न्यूज चैनल्स के विधाताओं का मानना है कि सिर्फ 3c ही टीआरपी दिला सकतें हैं। वैसे अब इस ट्रेंड में थोड़ा बदलाव भी आया है अब गंडे माला पहने तांत्रिक, भूत प्रेत, ज्योतिषी भी टीआरपी दिलवा सकते हैं।

रण देखते वक्त मुझे बिल्कुल ऐसा लगा कि असल न्यूज चैनल की कहानी दिखाई जा रही है। टीआरपी ना आने का मर्म, एक चैनल के नए प्रोग्राम का पहले ही लीक हो जाना, एक नया रिपोर्टर जो ये ठान कर आया है मीडिया जगत में कुछ अलग करेगा, बॉस का अपने चैनल के लोगों से कुछ हंगामें वाली स्टोरी करने को कहना, धमाकेदार इन्वेस्टिगेटिव स्टोरीज करवाना... ये सब एक न्यूज चैनल की हकीकत है। क्योंकि असल में ये बॉस लोगों की डिमांड रहती है कि “हंगामा हो”। वजह टीआरपी और सिर्फ टीआरपी होती है। अब बॉस लोगों को कौन समझाए कि रिपोर्टर का टीआरपी से क्या वास्ता। अगर बीच मीटिंग में बोलों तो स्थिति रण के पूरब शास्त्री जैसी। चारों तरफ से बीच मीटिंग में आप ऐसे घेरे जाएंगे जैसे चक्रव्यूह में फंसा कोई अभिमन्यु।

ये दूसरी चीज है कि बॉस ने हंगामा ‘क्रिएट’ ना करने को बोला हो लेकिन रिपोर्टर पर ये दबाव रहता है कि वो स्टोरी में हंगामा करवाए। ऐसे में कई रिपोर्टर वास्तविकता से भटक-कर स्टोरी क्रिएट करवा लेते है। ऐसे में अगर उसके ऊपर ‘बॉस का हाथ’ हो तो रिपोर्टर की बल्ले बल्ले। कई किस्से हुए जिसमें रिपोर्टर के साथ साथ उस चैनल के एडिटर पर भी उंगली उठी हो। कई बार ऐसा पढ़ने और देखने को मिला कि सेक्स रैकेट के जुड़े कई स्टिंग या स्टोरीज क्रिएट करवाई गई थी। बाद में बहुत हंगामा हुआ...चैनल को ऑफ एअर होना पड़ा...रिपोर्टर को अपनी नौकरी से हाथ धोना पडा़।

हर एक न्यूज चैनल में राजपाल यादव जैसे लोग मौजूद रहते हैं...जो ना सिर्फ चापलूसी में यकीन रखते हैं बल्कि चैनल्स में बॉस लोगों की क्या प्लानिंग चल रही हैं... इन्क्रीमेन्ट हो रहा है या नहीं, एक और चैनेल खुल रहा है, कितने लोगों को चैनल से निकाला जा रहा है.... बाप रे बाप ये सारी गॉसिप्स के पिटारे को वो ढोता रहता है। फिल्म में तो कम से कम राजपाल यादव एंकर तो था, लेकिन असल न्यूज चैनल की जिंदगी में तो कई, सिर्फ चाटुकारिता के बल पर इन्टस्ट्री में डटे हुए हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि वही चैनल के मालिक है....बाहर की बात बॉस तक और बॉस का मैसेज बाहर तक उनका यही काम रहता है। अगर बॉस की नजर में वो चापलूस अगर पास हो गया तो फिर क्या है। राजपाल यादव जैसे ही वो भी एक नए चैनल पर बड़ी पोस्ट या यू कहें चैनल हैड बनने के सपने देखने लगता है।

कई चैनलों में उद्योगपतियों, राजनीतिक दलों, बिल्डर और फिल्म इन्डस्ट्री से जुडे कई लोगों ने करोड़ों रूपए लगे हैं। कई चैनल सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं के भी हैं। तो जाहिर सी बात है कि पत्रकारिता में राजनीतिक दलों का तो हस्तक्षेप रहेगा ही। रण फिल्म में प्रधानमंत्री के स्टिंग ऑपरेशन दिखाए जाने के कुछ दिनों बाद ही विजय हर्षवर्धन मलिक को ये लगने लगता है कि इंडिया-24 मोहन पांडे का पीआरओ बन बैठा है। लेकिन क्या असलियत में भी किसी चैनल को ऐसा लगता है....हकीकत तो ये है कई चैनल एक आधी पार्टी के पीआरओ ही बन बैठे हैं। एक ही पार्टी के नेताओ की खबरें और इन्टरव्यू देखने को मिलते हैं। कई बार रिपोर्टिग करते वक्त मैने पाया कि विपक्ष पार्टी के नेताओं ने खुलेआम उस चैनल पर आरोप लगा दिया हो। अभी जल्द ही मीडिया से ही जुड़े एक सज्जन ने बताया कि एक न्यूज चैनल पर आने वाले एक खास प्रोग्राम का प्रचार सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस में ही होता है....क्यों... क्योंकि सोनिया गांधी इंडियन एक्सप्रेस ही पढ़ती हैं। ये बात हम सबने मजाक में उड़ा दी लेकिन इस बात में सच्चाई भी हो सकती है।

बस फिल्म में एक बात नहीं जमती ये कि पूरब शास्त्री ने चैनल में चल रहे गोरखधंधे को देखते हुए पत्रकारिता छोड़ने का मन बना लिया। हमेशा या यूं कहूं तो अधिकतर ऐसा नहीं होता है कि पत्रकारिता पर बाहर का दबाव रहता है। पत्रकार—खासतौर से एक क्राइम रिपोर्टर—अमूमन स्वतंत्र होता है। उसे सच्चाई और असलियत लिखने की आजादी रहती है। जो खबर जैसी हो उसे वैसा ही प्रेजेंट करने का हक होता है। फिल्म में आखिरकार सच्चाई की ही जीत हुई।

देश के चैनल्स की बात करें, तो एक-दुका चैनल्स को अपवाद मान कर छोड़ दे---और ये भी वो चैनल है जिनकी रेटिंग्स बहुत कम है या फिर टीआरपी की दौड़ से लगभग बाहर हैं—तो हमारे देश के अधिकतर चैनल्स निष्पक्ष है। उनका किसी भी राजनैतिक पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है। मीडिया में काम करने वाले व्यक्ति-विशेष का किसी पार्टी या नेता की तरफ झुकाव हो सकता है लेकिन चैनल का किसी और शायद ही हो। आजतक, स्टार न्यूज, इंडिया टी.वी, आईबीएन-7, जी न्यूज, एनडीटीवी की खबर देखने के बाद कभी ऐसा महसूस नहीं हुआ कि ये चैनल किसी (पोलिटकल) पार्टी या नेता के माऊथपीस की तरह काम करे रहें हो।

मैने जिस चैनल में काम किया था, वो कांग्रेस के एक बड़े नेता का है। लेकिन वहां काम करते हुए मुझे (और बाकी पत्रकारों) को शायद ही कभी ये एहसास हुआ हो कि हम कांग्रेसी चैनल में काम करते हैं। लेकिन मैंने अपने पति से जरुर सुना है कि उन्होंने जिस अखबार—नेशनल हेराल्ड—में काम किया था, वहां सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की तारीफ और बड़ाई वाली ही खबरें होती थी। करीब डेढ़ साल पहले नेशनल हेराल्ड बंद हो गया था। लेकिन अंदर की खबरें ये बता रही हैं कि जल्द ही राहुल गांधी के नेतृत्व और छत्र-छाया में ये अखबार जल्द ही बाजार में जोर-शोर से उतरने वाला है।
अखबारों में अमूमन ऐसा देखा गया है कि वो किसी ना किसी पार्टी की तरफ झुकाव रखते हैं। अंग्रेजी अखबार, हिंदुस्तान टाईम्स ( और हिंदी हिंदुस्तान) का किस पार्टी की ओर झुकाव है ये किसी से छिपा नहीं रहा है। द-हिंदु अखबार भी एक विशेष विचारधारा से प्रभावित है। ये दोनो वे अखबार है जो भारत के जाने-माने अखबार है। सर्कियुलेशन भी बहुत ज्यादा है। पायनियर के चीफ एडिटर भले ही राज्यसभा के सदस्य रहें हो, लेकिन वे खुद और उनका अखबार किस पार्टी का माऊथपीस है भला कौन नहीं जानती। लेकिन टी.वी में, पुछल्ले चैनल्स ही किसी ना किसी पार्टी लीडर या पार्टी के माऊथपीस हैं। हां ये बात जरुर है कि देश का सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाला अखबार, टाईम्स ऑफ इंडिया अभी भी अपनी निष्पक्ष खबरों के लिए जाना जाता है।
वैसे, रण फिल्म देखकर ऐसा लग रहा है कि जैसे अब हम—यानि पत्रकार—पुलिसवालों की श्रेणी में आ गए हैं। याद है ना किस तरह से मुंबईया फिल्मों में खाकीवर्दी को दागदार दिखाया जाता है। अपराधियों से सांठगांठ, किसी भी जगह पर सबसे बाद में पहुंचना, इत्यादि-इत्यादि...अब मीडियावालों को भी ऐसा ही कुछ कोप झेलना पड़ेगा। इस फिल्म से कुछ महीने पहले भी एक ऐसी ही हिंदी फिल्म, शोबिज़, आई थी। फिल्म बॉक्स-आफिस पर कुछ ज्यादा चल नहीं पाई। लेकिन उसमें भी मीडिया और एक क्राइम रिपोर्टर की कहानी दिखाई गई थी। अगर फिल्म देखगें तो, रामू की रण भूल जाएंगे।

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