Friday, December 25, 2009

फिल्मी दीवाने पहुंचे 'फिल्म-दीवाने'


फिल्मों के शौकीन को कहते हैं फिल्म-दीवाने। हमारे देश में शायद ही कोई ऐसा हो जिसे फिल्में देखना या उसके बारे में बात करना पसंद ना हो। लेकिन ‘फिल्म-दीवाने’ घूमने का भी कोई शौकीन हो सकता है, कभी सपने में भी नहीं सोचा था। सुनकर हैरान मत होइएगा, हमारे देश में एक ऐसी जगह भी है जिसे फिल्मी-दीवाने कहते है। जानना चाहेंगे क्यों, तो सुनिए!
हाल ही में, मैं और मेरे पति घूमने के लिए ऊटी गए थे। जबसे मैने फिल्में देखनी या यूं कहिए के फिल्मों के बारे में थोड़ा–बहुत जानना शुरु किया, तबसे ये नाम (ऊटी) मेरे जहन में अच्छे से बस गया था। सत्तर और अस्सी के दशक की ना जाने कितनी फिल्मों की शूटिंग इसी खूबसूरत हिल-स्टेशन पर हुई थी। लेकिन जैसे-जैसे दूसरे हिल-स्टेशन (नैनीताल, मसूरी इत्यादि) चर्चित होने लगे, शूटिंग वहां भी होने लगी। कश्मीर तो पहले से ही फिल्म-निर्माताओं की पसंदीदा जगह थी। इसके बाद यश चोपड़ा ने विदेशी हिल-स्टेशनों (स्विटजरलैंड, आस्ट्रिया आदि) को बॉलीवुड में पॉपुलर कर दिया। फिर एक ऐसा दौर आया, जब निर्माताओं ने उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश की ऐसी लोकेशन पर फिल्म शूट करनी शुरु कर दी जहां कम ही लोगों की नजर पड़ी थी—जैसे डलहौजी में 1942 ए लव स्टोरी, सुभाष घई की ताल, और ऋतिक रोशन की कोई मिल गया। लेकिन हिंदी हो या साऊथ की रीजनल फिल्में, ऊटी एक ऐसी जगह है जिसका क्रेज निर्माताओं में कम नहीं हुआ। नौकरी से इस्तीफा देने के बाद, मैं अपने पति से ‘कही’ बाहर घूमकर आने के लिए जिद कर रही थी। मेरे पति नें मुझे कई च्वाइस दी—जैसे दार्जिलिंग, केरल, ओरछा। लेकिन मुझे ना जाने क्यों, ऐसा लगा कि हमें ऊटी घूमकर आना चाहिए। मेरी मम्मी अभी भी मुझे बताती है कि जब मैं 3 साल की थी, तब वे भी पूरे परिवार के साथ ऊटी घूमकर आई थी। लेकिन 3 साल की बच्ची को ऊटी का कुछ याद नहीं था—याद है तो सिर्फ बॉलीवुड फिल्में।
हमने तय कर लिया कि हम जाएंगे तो ऊटी ही। फिर क्या था होटल बुकिंग से लेकर ट्रेन टिकट तक सब बुक कर लिया। जाने से कुछ दिन पहले ही हम दोनों (पति और मैं) एक बार फिर फिल्म देखने चल दिए—हम दोनों ही हिंदी फिल्म देखने के बड़े शौकीन है या यूं कहिए की फिल्म-दीवानें हैं। फिल्म थी ‘अजब प्रेम की गजब कहानी’— ‘वेक अप सिड’ देखने के बाद से ही मुझे रणबीर कपूर की एक्टिंग अच्छी लगने लगी थी। जैसे ही फिल्म शुरु होने वाली थी, मेरे पति ने मुझे बताया कि इस फिल्म की शूटिंग ऊटी में हुई है।
दरअसल, फिल्म के शुरुआत में ही प्रोड्यूसर ने ऊटी की लोकेशन लिखी थी और वहां के होटलों का आभार प्रकट किया था। ये सुनते ही मैं सीट से मानों उछल ही गई। मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा—मुझे इस बात की कतई जानकारी नहीं थी कि ‘अजब प्रेम...’ की शूटिंग ऊटी में हुई थी।
ऊटी जाने की तैयारी कर ही रहे थे कि जाने से एक दिन पहले ही मुझे बुखार चढ़ गया। एक बार तो ऐसा लगा कि ऊटी घूमने का प्रोग्राम कैंसिल कर दिया जाए। लेकिन मैने किसी तरह मन पक्का किया और डॉक्टर से एक हफ्ते की दवाई लेकर हम ऊटी के लिए चल दिए। केरल एक्सप्रेस में दो दिन मैंने सोते हुए ही बीता दिए। मेरी तबीयत खराब होने की वजह से पति का मूड भी अपसेट हो गया। दरअसल, ट्रेन से जाने का विचार उन्हीं का था। विदेशी पर्यटकों की तरह ही हमें भी देश के अलग-अलग हिस्सों को ट्रेन से ही घूमना ज्यादा पंसद है। हवाई सफर से विभिन्न-विभिन्न प्रांतों के बारे में जानने का पता ही नहीं चलता। ट्रेन कई छोटे-बड़े शहरों और गांवों से होती हुई करीब आधा दर्जन राज्यों से होकर गुजरती है। ऐसे में वहां के लोग और मिट्टी को करीब से अच्छा समझा जा सकता है। लेकिन ट्रेन के वो दो दिन मैने कैसे काटे ये, मैं ही जानती हूं।
सुबह के करीब पांच बजे हमारी ट्रेन कोयम्बटूर पहुंच चुकी थी। वहां से हम टैक्सी से चल दिए ऊटी की ओर। केरल और कनार्टक सीमा से लगे नीलगिरी जिले में पड़ता है ऊटी (या ऊडागामंडलम)। चाय और कॉफी के बागानों के लिए जाने-जाना वाला ये हिल स्टेशन कोयम्बटूर से करीब 80 किलोमीटर की दूरी पर है। जैसे-जैसे हमारी टैक्सी, चाय बागानों से होती हुई सुंदर और मनोरम पहाड़ी रास्तों से गुजर रही थी, वैसे-वैसे मुझ लग रहा था कि मेरी तबीयत कुछ अच्छी होती जा रही है। जैसे ही मैने ये बात पति को बताई तो, वे तपाक से बोल उठे, “तुम तो पुरानी हिंदी फिल्मों के उस सीन की तरह बात कर रही हो, जैसे जब कोई व्यक्ति बीमार होता था, तो फिल्म में डॉक्टर ऊटी या दार्जिलिंग जाने की सलाह देता था।”
उनकी बात सुनकर, मैं खिलखिलाकर हंस पड़ी—दो दिन बाद मैं पहली बार हंसी थी शायद।
खैर, मैं बता तो रही थी ‘फिल्म-दीवाने’ की, लेकिन बातों ही बातों में पूरा यात्रा वृतांत बता दिया।
ऊटी में अपने होटल (दाई तरफ फोटो में) पहुचंते ही मेरा मन और खिल उठा। एक तो होटल इतना शानदार था, दूसरा उसके ठीक सामने ही ऊटी-झील थी। होटल की कॉटेज से लेक (झील) का नजारा देखते ही बनता था।
अगले दिन हम होटल के रिसेप्शन पर ऊटी के बारे में घूमने की जानकारी लेने पहुंचे, तो मैनेजर ने कहा, “आप ‘फिल्म-दीवाने’ घूमना पसंद करेंगे ?” हमने एक-दूसरे को देखा और मैनेजर से पूछा, “ये ‘फिल्म-दीवाने’ क्या बला है?” मैनेजर ने जबाब दिया कि यहां (ऊटी) जितनी भी घूमने की जगह है उसे ‘फिल्म-दीवाने’ बोला जाता है। ऐसा क्यों है तो उसने बताया कि ऊटी में इतनी बड़ी तादाद में फिल्मों की शूटिंग होती है कि इन पर्यटक स्थलों को ‘फिल्म-दीवाने’ का नाम दे दिया गया है।
एक गाइड –नुमा टैक्सी ड्राइवर को साथ लेकर हम चल दिए ‘फिल्म-दीवाने’ घूमने। जैसे-जैसे टैक्सी ऊटी के पर्यटक स्थलों पर जा रही थी, हमारा ड्राइवर बताता जा रहा था कि इस जगह पर फंला फिल्म की शूटिंग हुई है, इस जगह उसकी। “आपने राजा-हिंदुस्तानी तो देखी ही होगी, उसमें करिश्मा जिस दुकान पर सामान खरीदती है, वो यही है...सनी देओल का वो गाना है ना, यारा-ओ-यारा, वो यही शूट हुआ था।” कयामत से कयामत में जो गाना है ना—गजब का है दिन—वो यहां शूट हुआ था।
ड्राइवर को ये भी पता था कि अजब प्रेम... की शूटिंग भी यही हुई थी। “जी हां मैडम, उस फिल्म (अजब प्रेम...) के लिए यहां इटली का सेट लगाया था फिल्मवालों ने।”
“तुम देखने जाते हो फिल्मों की शूटिंग,” मैने ड्राइवर से पूछा, तो वो बोला, “नहीं मैडम, हमे शूटिंग देखने का क्रेज नहीं है...वो तो टूरिस्ट-लोगों को होता है।” अब मुझे समझ में आया कि, आमिर खान को तमिलनाडु के लोग क्यों नहीं पहचानते है। याद है ना कुछ दिन पहले, अपनी फिल्म, थ्री-इडियट्स की प्रमोशन के दौरान जब वे तमिलनाडु के महाबलीपुरम पहुंचे, तो कोई उन्ही पहचान ही नहीं पाया था।
ये छोटा से पुल देख रहे है ना झील के उस पार, वो ‘कुछ-कुछ होता है’ में दिखाया था। “फिल्म में शाहरुख खान अपनी बेटी से मिलने के लिए समर-कैंप गया था...उसमें जिस पुल पर दौड़ कर जाता है, वो इस झील के ऊपर ही बनाया गया था।” लेकिन, फिल्म में तो समर-कैंप शिमला बताया था। “यही तो मैडम, फिल्मवालें बताते कोई और लोकेशन है और शूटिंग करने यहां आते है।” ड्राइवर के फिल्मी-ज्ञान पर हम भी मंत्रमुग्ध थे—वाकई वो ‘फिल्म-दीवाना’ था।
आपने ‘रोजा’ फिल्म तो देखी होगी ना? मेरे पति ने जबाब दिया, हां। उसमें जो आखिरी सीन था ना कश्मीर-वाला—जिसमें आंतकवादी हीरो को छोड़ते है, वो इसी डैम (कामराज सागर) पर ही तो शूट किया गया था। मणिरत्नम की कोई भी ऐसी फिल्म नहीं है जो यहां शूट ना की गई हो। रोजा का ‘छोटी सी आशा...’ इसी नीलगिरी-फॉल (वाटर फॉल) पर शूट किया गया था। त्रिदेव फिल्म में जो अमरीश पुरी का महल था, वो भी इसी नीलगिरी-नायगरा पर बनाया गया था।
छैया-छैया गाना था ना, ‘दिल से’ फिल्म में, वो भी यहां की टॉय-ट्रेन पर शूट हुआ था। हां, मैं एक बात बताना भूल गई कि लैंड-स्लाइड (चट्टानें खिसकने के कारण) की वजह से हम इस हैरीटेज ट्रेन में बैठने का आनंद नहीं ले सके। अभिषेक-ऐश्वर्या की आने वाली फिल्म, ‘रावण’ (डायरेक्टर, मणिरत्नम) की शूटिंग भी कुछ दिन पहले ही यहां खत्म हुई है।
ये जो दूर पहाड़ी पर सफेद रंग का होटल देख रहे है ना, ये मिथुन चक्रवर्ती का फाइव स्टार होटल है। जो भी हीरो, हीरोइन शूटिंग के लिए ऊटी आते है, वो इसी होटल में ठहरते है।
अंग्रेजों द्वारा बसाया गया ये हिल-स्टेशन बेहद खूबसूरत है। मद्रास स्टेट (आज का तमिलनाडु) की समर-कैपिटल थी ऊटी, जिसे 1821 में एक अंग्रेज अफसर, जॉन सुलिवन ने बसाया था। वैसे भारत में अधिकतर हिल स्टेशन अग्रेजों ने ही बसाए थे---कश्मीर को छोड़कर, जिसे मुगल शासकों ने बसाया था या यूं कहे कि अपने आराम की पंसदीदा जगह बनाया था।
ऊटी में और भी कई घूमने की जगह है। जैसे रोज-गार्डन, बोटेनिकल गार्डन, लैंडस्कैप, डोडाबेटा, आदि।
लेकिन सबसे मनमोहक है प्याकरा-लेक (झील)। कई किलोमीटर में फैली ये नेचुरल झील है---ऊटी लेक आर्टिफिशयल है। इस झील के बीच में एक छोटा सा आईलैंड (द्वीप) भी है। झील के चारों और चीड़ और दूसरे पहाड़ी पेड़ों के जंगल है। झील का पानी पूरी तरह हरा दिखाई देता है।
ऊटी से कुछ दूरी पर ही है मुडुमलाई टाइगर रिर्जव और बांदीपुर नेशनल पार्क (कर्नाटक)। नीलगिरी पहाड़ों की तलहटी में बनी ये दोनों वाइल्ड लाईफ सेंचुरी भी बेहद मनमोहक है। हां ये बात और है कि कई घंटों की सफारी के बाबजूद यहां कोई टाइगर दिखाई नहीं पड़ता—हिरन, सांभर और वाईसन जैसे जानवर जरुर दिख जाते हैं।
कभी मौका मिले तो आप भी जरुर घूम कर आइये ऊटी—पहाड़ों की रानी।

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