Sunday, March 21, 2010

कसूरवार कौन ?

अगर कोई गलत खबर न्यूज चैनल पर चल जाए तो क्या हो सकता है? शायद आपका जवाब हो कि, गलत खबर चलने पर न्यूज चैनल पर मानहानि का केस किया जा सकता है। लेकिन कोई व्यक्ति गरीब हो, असहाय हो, और उसके बाद न्यूज चैनल पर गलत खबर चलने के बाद आसपास के लोग उसे ‘बलात्कारी और वहशी’ जैसे शब्दों से उसे बुलाने लगें, अपने ऊपर लगे लांछन से घर के बाहर निकलने के काबिल ना रह जाए, ऐसी स्थिति में वो आदमी क्या करेगा... कभी सोचा है...जवाब बहुत मुश्किल है। राजधानी दिल्ली के एक पति पत्नी भी कुछ ऐसी ही दुविधा में थे और गलत खबर चलने का खामियाजा उन्होंने अपनी जान देकर चुकाया।



टेलीविजन मीडिया का स्वरूप बहुत बड़ा है। लोग भले ही न्यूज पेपर में छपी खबरें पढ़कर भूल जाएं लेकिन टीवी पर चली खबरें जल्दी ही दिमाग में बैठ जाती है। आम आदमी टीवी पर चली खबरों पर ज्यादा विश्वास कर लेता हैं। क्योंकि देखे सुने गए पर जल्दी यकीन होता है। इसलिए टीवी, आम लोगों को बहुत जल्दी प्रभावित कर लेता है--- कुछ ऐसा ही हमें टीवी पत्रकारिता की पढ़ाई के वक्त बताया गया था। ये पढ़ाई की बात रही लेकिन क्या टीवी पर खबर चलने का गलत प्रभाव भी उतनी ही जल्दी पड़ जाता है?
क्या किसी खबर के चलने से परिवार का आत्मसम्मान चकनाचूर हो सकता है।
जिस व्यक्ति को न्यूज चैनल आरोपी बता कर चला रही है वो क्या सच में आरोपी है?
क्या पीड़ित व्यक्ति ने रो रो कर जो रिपोर्टर को बताया वो क्या वाकई सच है?
कहीं पीड़ित व्यक्ति द्वारा खबर चलवाना एक साजिश तो नहीं है?
ये ऐसे सवाल है जिनपर गौर करना अक्सर रिपोर्टर भूल जाते हैं।
आज से करीब 4 साल पहले की बात है। उस दिन एक न्यूज चैनल की हेल्पलाइन पर 17-18 साल की एक लड़की ने फोन किया। लड़की फूट-फूट कर रो रही थी और अपनी आप-बीती बयां कर रही थी। लड़की ने बताया कि उसकी मां की मृत्यु हो चुकी थी लिहाजा उसके पिता ने पालन पोषण के लिए मौसी-मौसा के पास भेज दिया है। उसने बताया कि मौसी-मौसा ने उसे अपने घर में बंधक बना लिया है और अक्सर मौसा उसके साथ बलात्कार करता है। मौसा, दिल्ली के एक प्रतिष्ठित सरकारी संस्थान में कार्यरत थे। खबर वाकई हिला देने वाली थी। लड़की के रूंदन से किसी का भी दिल दहलना लाजमी था।
चैनलों में कॉम्पीटीशन ही था कि हर दिन एक ना एक प्रोमो स्टोरी, रिपोर्टर को देनी ही होती थी। प्रोमो इसलिए ज्यादा जरूरी होता था क्योंकि

तीन बेहतरीन चैनल्स के क्राइम प्रोग्राम एक ही टाइम पर यानि रात के 11 बजे आते थे। क्राइम प्रोग्राम की टीआरपी अक्सर नंबर 1 रहती थी, लिहाजा तीनों चैनल्स के क्राइम प्रोग्राम्स में एक्सक्लूसिव करने की होड़ लगी रहती थी।

तीन बेहतरीन चैनल्स के क्राइम प्रोग्राम एक ही टाइम पर यानि रात के 11 बजे आते थे। क्राइम प्रोग्राम की टीआरपी अक्सर नंबर 1 रहती थी, लिहाजा तीनों चैनल्स के क्राइम प्रोग्राम्स में एक्सक्लूसिव करने की होड़ लगी रहती थी। ऑफिस को उस दिन की प्रोमो स्टोरी मिल चुकी थी क्योंकि लड़की अपने मौसा पर बलात्कार और बंधक बनाने जैसा संगीन आरोप लगा रही है... तो इससे बेहतर क्या होगा। फटाफट एक रिपोर्टर को लड़की के पास रवाना किया गया। खबर के चलने (एयर) का टारगेट उसी दिन का था। लिहाजा रिपोर्टर को असाइनमेंट डेस्क से जल्दी खबर कवर करने की बार बार इन्स्ट्रक्शन मिल रही थी या यूं कहा जाए कि रिपोर्टर पर हर 10 मिनट बाद फोन कर कर के दबाव बनाया जा रहा था। बीच बीच में असाइनमेंट साथ ही अच्छा शूट करने के लिए बोल रहा था... कि लड़की को ऐसे चलाना...वैसे चलाना... रोते हुए कटवेज बनाना, आंख पोछते हुए कटवेज बनाना, प्रोमो स्टोरी है ज्यादा शूट करना, बलात्कार की पीड़ित है इसलिए ऐसा शूट हो जिससे उसका चेहरा ना दिखे... मौसी मौसा को कैमरे पर पकड़ने की कोशिश करना, कुछ ‘ड्रामा’ हो जाए तो अच्छा है.... वगैरा वगैरा।
रिपोर्टर लड़की द्वारा बताए गए घर पर पंहुच चुका था। उस वक्त घर पर मौसी मौसा मौजूद नहीं थे। न्यूज चैनल्स की गाड़िया देखकर मौहल्ले में खबर की आग की तरह फैल चुकी थी। आस पास के लोग भी तमाशबीन बनकर लड़की के घर पर पहुंच गए थे। लड़की ने रिपोर्टर को रो-रो कर अपनी पूरी दास्तान बता डाली।
ये सारी बातें मोहल्लेवाले भी सुन रहे थे। अपने आरोपों को सिद्ध करने के लिए उस लड़की ने शरीर पर पिटाई के तमाम निशान दिखाए। कहते हैं ना कि लड़कियों के चार आंसू देखकर दिल पसीज जाता है ....यही उन मोहल्ले वालों के साथ हुआ। कुछ पता हो या ना वो भी लड़की की हां में हां मिलाने लगे।
कुछ को तो टीवी पर आने का मौका मिला था...लिहाजा रिपोर्टर को कैमरे में बाइट तक दे डाली कि मौसी मौसा लड़की को पीटते थे। हमारे घर तक आवाज आती थी। “वो (मौसा) तो रामलीला में रावण का रोल करता था और असल जिंदगी में भी रावण ही बन गया”—लड़की का मौसा दिल्ली की एक रामलीला में रावण का रोल करता था। लेकिन सिर्फ रोने से ही आरोप सिद्ध नहीं होते लिहाजा रिपोर्टर ने सूझबूझ दिखाते हुए लड़की से उसकी मेडिकल रिपोर्ट या फिर पुलिस कंपलेंट दिखाने के लिए कहा। लेकिन लड़की ने रोते हुए ये बोल डाला कि भैया मुझे तो निकलने नहीं देते हैं कैसे जाऊं पुलिस के पास? चूंकि बलात्कार जैसे गंभीर विषय की खबर बिना पुलिस से क्रासचैक किए नहीं चलाई जाती। इस बीच रिपोर्टर के कई सवालों में उलझते देख उस लड़की ने एक-दो चैनल के लोगों को और बुला लिया।

उन दिनो रिपोर्टर से बार बार कुछ ‘ड्रामा’ करने की बात की जाती थी—हालांकि अब ये ट्रैंड लगभग खत्म हो गया है—तो रिपोर्टर ने सोचा कि क्यों ना पुलिस के पास इस दुखियारी लडकी को लेकर चला जाए... इससे रेप की खबर भी चल जाएगी और उस क्राइम प्रोग्राम का और नाम हो जाएगा

उन दिनो रिपोर्टर से बार बार कुछ ‘ड्रामा’ करने की बात की जाती थी—हालांकि अब ये ट्रैंड लगभग खत्म हो गया है—तो रिपोर्टर ने सोचा कि क्यों ना पुलिस के पास इस दुखियारी लडकी को लेकर चला जाए... इससे रेप की खबर भी चल जाएगी और उस क्राइम प्रोग्राम का और नाम हो जाएगा कि वो अबला और गरीब लोगों के लिए भी इंसाफ का काम करता है। यानि जब मौसा गिरफ्तार होगा तो ‘खबर का इम्पैक्ट’ भी चलाया जाएगा। बस फिर क्या था मीडियावाले पीड़ित लड़की को लेकर थाने पहुंच गये। शिकायत दर्ज करवाने में मदद की। लेकिन मौसा के खिलाफ एफआईआर और उसकी गिरफ्तारी तभी हो सकती थी जब लड़की के मेडिकल टेस्ट में ये बात साफ हो जाती कि वाकई उसके साथ कोई जोर जबर्दस्ती की गई है।
अब रिपोर्टर के पास कवर करने के लिए बस एक पक्ष बचता था—आरोपी मौसा का ‘वर्जन’ लेना। लेकिन मौसा-मौसी ने यहां एक गलती कर डाली। जब रिपोर्टर अपने कैमरे सहित उनके घर पहुंचा तो उन्होंने कैमरे के सामने ही लड़ना शुरु कर दिया। रिपोर्टर पूछता रह गया कि उनपर लगे आरोप सहित है या गलत लेकिन वे कैमरे से बचते रहे। मौसा-मौसी के इस व्यवहार से रिपोर्टर को भी कहीं ना कहीं लगने लगा कि वे शायद ‘कसूरवार’ है और इसीलिए कैमरे के सामने नहीं आना चाहता—चोर की दाढ़ी में तिनका। लेकिन यहां रिपोर्टर ने भी शायद एक गलती कर दी थी। वो सीधा कैमरा ऑन करके उनके घर में पहुंच गया था, जिसकी वजह से मौसा-मौसी बौखला गए और रिपोर्टर पर बिदक गए। अगर रिपोर्टर बिना कैमरा ऑन किए मौसा-मौसी के पास पहुंचता और फिर उनका पक्ष सुनके बाद (उनकी) बाइट लेता तो शायद आज ये लेख लिखने की जरुरत ना पड़ती।
अब रिपोर्टर को खबर का पूरा ‘मसाला’ मिल चुका था। आउटपुट प्रोड्यूसर ने विजुअल देखकर स्क्रिप्टिंग मौसा के खिलाफ ठोक कर लिखी थी। शाम को 7 बजे से चैनल पर प्रोमों भी धड़ाधड़ चल रहा था। ‘कलयुगी मौसा का कलंक… आज वो लड़की रोएगी… मौसा का पाप... देखिए रात 11 बजे।’ और भी ना जाने क्या-क्या। चैनल पर बार-बार ये सब ‘टीज’ किया जा रहा था। रिपोर्टर को बॉस की तरफ से वाहवाही मिल रही थी। बॉस की तरफ से बाकी रिपोर्टर्स को ऐसी ही खबर करने की नसीहत भी दे दी गई थी। रिपोर्टर पूरे ऑफिस मे ‘सीना चौड़ा’ करके घूम रहा था। 10 लोगों को रात खबर देखने के लिए एसएमएस भी भेज चुका था। दूसरे चैनल्स में क्राइम रिपोर्टर्स की हालत खराब थी। वो बार-बार हमारे चैनल की इस स्टोरी के बारे में जानने की कोशिश कर रहे थे।
सर्वश्रेष्ठ चैनल के रिपोर्टर्स की जमकर क्लास लग रही थी। कुछ को तो ईमेल करके स्टोरी छूटने के लिए उत्तर(explanation) मांगा जा रहा था। खैर रात के 11 बजे वो खबर चली...सभी ने तारीफों के पुल बाँध दिए। बॉस ने भी अनाउंस कर दिया था कि अगले दिन इस खबर को और पीटेंगे। फॉलोअप होगा, महिला आयोग से बात की जाएगी। न्यूज चैनल में काम करने की विडम्बना तो देखिए कि एक बार खबर चलने के बाद ना किसी ने उस लड़की के बारे में सोचा और ना ही उसके मौसा के बारे में। उस दिन का कुंआ खुद चुका था और पानी पिया जा चुका था। लेकिन क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अगले दिन सुबह क्या हुआ ?
मीडिया के लिए काला अध्याय थी वो सुबह। खबर मिली कि मौसा और मौसी ने खुदकुशी कर ली और उन्होंने एक लंबा चौड़ा सुसाइड नोट छोड़ा था।
जिसमें अपने आप को निर्दोष बताया था और अपनी पूरी वेदना प्रकट की थी। ऑफिस के बॉस और रिपोर्टर के पैरों तले जमीन खिसक गई। सबकी धड़कनें बढ़ी हुईं थीं कि कहीं अपनी मौत का जिम्मेदार वो मीडिया को ना ठहरा गया हो। जैसे तैसे प्रोग्राम का सुबह का रिपीट बुलेटिन रोका गया।
अब न्यूज चैनल में दो फाड़ हो चुका था यानि दो ग्रुप हो गए थे। एक ग्रुप वो जिन्होंने ये खबर चलाई थी और दूसरे ग्रुप में वो चैनल थें जिनके रिपोर्टर को पिछली रात ये खबर कवर ना करने के एवज में explanation देना पड़ा था। अंदर की बात ये भी थी, कि सर्वश्रेष्ठ चैनल के क्राइम प्रोग्राम की टीआरपी, गलती करने वाले पॉप्युलर प्रोग्राम से कम आती थी। तो अब सर्वश्रेष्ठ चैनल को उस प्रोग्राम को नीचा दिखाने का मौका मिल चुका था। सुबह से ही उस चैनल्स के रिपोर्टर्स ने दनादन लाइव-चैट शुरू कर दिया। शाम तक सर्वश्रेष्ठ चैनल, खबर की हकीकत दिखाता रहा। अब तक वो लड़की भी कटघरे में खड़ी हो चुकी थी। मोहल्लेवाले भी मरने वाले पति-पत्नी के पक्ष में बोलने लगे थे। अब ये बात निकल कर आने लगी थी ...कि मौसी मौसा जब घर में नहीं होते थे तो लड़की का एक दोस्त घर में आता था। मौसी मौसा को पता चला... इस बात को लेकर लड़की की पिटाई होती थी।
अब तक खबर बिल्कुल उल्टी हो चुकी थी। लड़की के शरीर पर पड़े निशान की भी हकीकत सामने आ चुकी थी। एक दिन पहले तक उछलने वाले उस रिपोर्टर का भी मुंह लटक चुका था। क्योंकि वाहवाही करने वाले बॉस ने अब उल्टा रूख अपना लिया था। वो रिपोर्टर की रिपोर्टिंग पर तमाम सवालिया निशान लगाकर चिल्ला चुके थे। रिपोर्टर, बॉस और वो प्रोड्यूसर जिसने कॉपी लिखी थी... किसी से नजरें नही मिला पा रहे थे। रिपोर्टर की आंखे लाल थी। इन सबका दोषी वो खुद को ही मान रहा था। ऑफिस वाले सब सर पीट रहे थे। क्योंकि उन्हें भी इस बात का अंदाजा नहीं था कि एक खबर चलाने की जल्दबाजी दो लोगों की जान पर भारी पड़ जाएगी। हां ये बात जरुर है कि इस तरह की गलती कभी जानबूझ कर नहीं की जाती। लेकिन उस खबर के बाद से ही हर खबर के लिए (खास तौर से रेप से जुड़ी) रिपोर्टर से कई बार स्टोरी को लेकर सवाल-जवाब होने लगे। सवाल प्रोड्यूसर (स्क्रिप्ट राइटर) से किए जाने लगा। उन्हे दिशा-निर्देश दिया गया कि अगर किसी स्टोरी पर जरा भी संदेह हो तो तुंरत ‘गिरा’ दो। दरअसल, यहां केवल स्टोरी की विश्वसनीयता का सवाल नहीं था बल्कि रिपोर्टर और चैनल की विश्वसनीयता भी दांव पर लगी थी।
मौसी-मौसा की मौत ने इलैक्ट्रॉनिक मीडिया को सबक दे दिया था। कभी भी क्रॉसचैक किए बिना खबर चलाने का प्रतिकूल भी प्रभाव पड़ सकता है। आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों है भई, कि खबर की जल्दबाजी से लोगों की जान पर बन आए। वो टीवी रिपोर्टिंग की गलती का पहला बड़ा किस्सा था। लेकिन ये कहा जा सकता है कि उसके बाद से ही मीडिया का ‘डाउनफाल’ शुरु हो गया। आज से चार साल पहले मीडिया को हमेशा वाहवाही मिलती थी... लेकिन अब गालियां। टीवी न्यूज चैनल के लिए सिर्फ यही एक काला अध्याय नहीं है। इसके बाद एक न्यूज चैनल द्वारा चलाया गया फर्जी स्टिंग ऑपरेशन भी आया... और आरूषि मर्डर केस भी। न्यूज चैनल्स द्वारा हो रही गलतियों का ही अंजाम था कि सूचना प्रसारण मंत्रालय को नए नियम-कानून लाने पड़े। न्यूज चैनल्स ने अपनी एक संस्था गठित (एनबीए यानि न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन) कर दर्शकों को चैनल्स पर चलने वाले कंटेट के बारे में शिकायत दर्ज करने का एक फोरम दिया गया। (ये लेख मैंने मीडियामंचडॉटकॉम नाम की न्यूज पोर्टल के लिए 'मीडिया का काला अध्याय' नाम से लिखा था)

Friday, March 12, 2010

आज टीवी में आग लगा दूंगा !

...एक चैनल के क्राइम रिपोर्टर्स को स्कूप ढूंढने के लिए इतनी डांट पड़ी कि उन्होंने गुस्से में आकर बाबा के आश्रम को तहस नहस कर डाला। उन रिपोर्टर्स की शह पर स्थानीय लोगों ने बाबा के कमरे का दरवाजा तक तोड़ डाला। एक चैनल का रिपोर्टर तो इतना अधिक 'उत्तेजित' था कि बाबा की एक डायरी को ही अपने ऑफिस तक उठा लाया। उसका मानना था कि वो अपने चैनल पर बाबा की डायरी दिखाकर टीवी में 'आग' लगा डालेगा...


दिल्ली पुलिस ने एक अय्याश बाबा को क्या पकड़ा, रिपोर्टर्स के लिए चांदी ही चांदी। आरूषि-हेमराज हत्याकांड के बाद बाबा भीमानंद ही ऐसे हैं जिनकी कवरेज लगातार 10 दिनों से सबसे ज्यादा न्यूज चैनल्स में दिखाई जा रही है। काफी दिनों बाद यही एक केस आया है जिसमें एक बार फिर रिपोर्टर्स को शैरलक होम्स और जेम्सबांड बनकर अपनी प्रेडिक्शन करने (तुक्का मारने) का मौका मिला है। अब सेक्स रैकेट चलाने वाले बाबा राजीव रंजन द्विवेदी उर्फ शिवानंद उर्फ शिवा द्विवेदी उर्फ भीमानंद के बारे में रिपोर्टर्स ने खुलासे तो कर डाले लेकिन अब बाबा के सीसीटीवी कैमरे से कुछ रिपोर्टर्स को डर लग रहा है... क्यों ? तो बस आगे पढ़ते रहिए...
जिस दिन ढोंगी बाबा दिल्ली में गिरफ्तार हुआ उस दिन बजट का दिन था (26 फरवरी 2010)। लिहाजा अमूमन सभी चैनल्स बजट स्पेशल में जुटे हुए थे। एक ‘धार्मिक बाबा’ के गिरफ्तार होने की खबर को किसी ने खास तवज्जो नहीं दी। कुछ को पता नहीं चला और कुछ क्राइम रिपोर्टस को इस खबर को कवर करने के लिए कैमरा यूनिट तक नहीं मिली (सभी कैमरा यूनिट बजट कवरेज में जो झोंक रखी थी)। लेकिन शाम के 7 बजे के बुलेटिन में जैसे ही एक न्यूज चैनल ने बाबा की रहस्यमयी गुफा या यूं कहें बाबा के छिपने या फिर भागने के ठिकाने की एक्सक्लूसिव कवरेज दिखाई, तो मानों बाकी चैनल्स में हड़कंप मच गया।
उस खबर पर जाने वाले रिपोर्टर्स की जम कर क्लास लगाई गई। जो कवरेज के लिए नहीं पहुंचे थे उनकी तो और जमकर क्लास लगी। रिपोर्टर्स को अपनी गलती का अहसास हो रहा था लिहाजा एक के बाद एक न्यूज चैनल के रिपोर्टर्स का उसके गुफा में पहुंचने का तांता लग गया। गुफा वाकई हैरान कर देने वाली थी। सेक्स रैकेट चलाने वाले इस सरगना ने अपने काले धंधे पर पर्दा डालने के लिए भगवान की मूर्तियों का सहारा लिया था। तमाम देवी देवियों की मूर्तियों के पीछे एक छिपा हुआ दरवाजा था। अब भई अगर बाबा भीमानंद की नॉन स्टॉप कवरेज की जा रही है तो रिपोर्टस से उनके बॉस लोग ज्यादा से ज्यादा आउटपुट की भी डिमांड कर रहे थे।
पहले दिन बाबा के कमरे के अंदर कोई रिपोर्टर नहीं पहुंच पाया क्योंकि बाबा के कमरे पर ताला जड़ा हुआ था। कुछ चैनल्स पर तो बंद कमरा ही दिखाया गया लेकिन कुछ ने तो मंदिर के केयरटेकर के कमरे को ही बाबा का बेडरूम बना डाला। इतना ही नहीं एक न्यूज चैनल ने तो केयर टेकर के कमरे को बाबा के कमरा बता कर एक्सक्लूसिव बता डाला... दबा के चला बाबा का (फर्जी) कमरा।
मुंह में राम, बगल में लड़की वाला ये बाबा सितंबर 2010 में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स के लिए लड़कियों (कॉलगर्ल्स) की नई खेप तैयार करने में लगा हुआ था।
पुलिस सूत्रों के हिसाब से भीमानंद बाबा मॉडल, सीरियल्स और फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्रियां, एयर होस्टेस, कॉलेज गोइंग गर्ल्स की भर्ती में लगा हुआ था। पेइंग गेस्ट में रहने वाली लड़कियां उसकी गैंग की प्राथमिकता होती थीं। जैसा कि मैनें पहले ही बताया कि ढोंगी बाबा भीमानंद की गिरफ्तारी इसलिए बड़ी थी क्योंकि वो सबसे बड़ा सेक्स रैकेट चलाने वाला सरगना माना जा रहा है। दिल्ली में बड़े बड़े सेक्स रैकेट चलाने वाले सरगनाओं को दिल्ली पुलिस पहले पर्दाफाश कर चुकी है जैसे कंवलजीत, बॉबी छक्का, किरन मम्मी वगैरा वगैरा.... और इनकी शह पर काम संभालने वाली सोनू पंजाबन, अंकित धीर का भी खुलासा हो चुका है।
चैनल्स में इस खबर को प्राथमिकता दी जा रही थी। विजुअल मीडिया के लिए जो भी रिक्वायरमेंट होती है बाबा के विजुअल, बाबा के भजन गाने वाली सीडी, बाबा की बाइट,पुलिस की बाइट,कॉलगर्ल्स के विजुअल, रहस्यमयी गुफा के विजुअल वो सबकुछ इस स्टोरी में थी ही। लेकिन केवल रहस्यमयी गुफा कब तक चलेगी टीवी में लिहाजा कुछ रिपोर्टर्स ने बाबा का बाथरूम और टॉयलेट दिखाना शुरू कर दिया... कि बाबा इसी बाथरूम में नहाता था और... भगवान जाने टॉयलेट देखकर क्या बोला होगा उस रिपोर्टर ने। लेकिन माननी पड़ेगी उस चैनल की हिम्मत... ना सिर्फ बाबा का बाथरूम टॉयलेट दिखाया बल्कि शहद की शीशी दिखाकर ये तक कह डाला कि उस शीशी में ‘बाबा का शक्तिवर्धक तेल’ है।
इसी को कहते हैं गलाकाट रिपोर्टिंग। मीडिया ने एक के बाद एक बाबा के खुलासे किए। सीडी और फोटोग्राफ्स में बाबा के भक्त नेताओं के नाम का भी खुलासा किया। बाबा की डायरी में मिले पुलिसवालों के नाम का खुलासा किया... जैसे... लेकिन आखिर उस अंग्रेजी चैनल के रिपोर्टर का खुलासा क्यों नहीं किया जो बाबा की सीडी में भजन सुनते दिख रहा था। शायद उस रिपोर्टर का नाम इतना बड़ा ना हो या फिर वाकई बाबा अपने भाषाई जाल में अच्छे अच्छों को फंसाने में माहिर था चोहे वो नेता हो या रिपोर्टर या फिर आम आदमी।
सुनने में आया है कि एक चैनल के क्राइम रिपोर्टर्स को स्कूप(exclusive story) ढूंढने के लिए इतनी डांट पड़ी कि उन्होंने गुस्से में आकर बाबा के आश्रम को ही तहस नहस कर डाला। उन रिपोर्टर्स की शह पर स्थानीय लोगों ने बाबा के कमरे का दरवाजा तक तोड़ डाला। और अंदर रक्खी डायरियों को खंगालना शुरू कर दिया।

एक चैनल का रिपोर्टर तो इतना अधिक एक्सटाइटेड था कि बाबा की एक डायरी (जो कि एक केस प्रॉपर्टी है) को ही अपने ऑफिस तक उठा लाया। उसका मानना था कि वो अपने चैनल पर बाबा की डायरी दिखाकर टीवी में आग लगा डालेगा


एक चैनल का रिपोर्टर तो इतना अधिक एक्सटाइटेड था कि बाबा की एक डायरी (जो कि एक केस प्रॉपर्टी है) को ही अपने ऑफिस तक उठा लाया। उसका मानना था कि वो अपने चैनल पर बाबा की डायरी दिखाकर टीवी में आग लगा डालेगा(तहलका मचा देगा)। हालांकि बाद में उस चैनल के बॉस ने रिपोर्टर की जमकर डांट पिलाई तो वो वापस डायरी को वहीं रख आया। कुछ रिपोर्टर ने डायरी उठाई तो कुछ ने बाबा की फोटोग्राफ्स। अब जब रिपोर्टर ने ये सब कारस्तानी की है तो इलाके लोग क्यों चुप रहेंगे इलाके के लोगों ने भी बहती गंगा में हाथ धो डाला। बताते हैं कि बाबा के कमरे के कुछ सामान भी चोरी हो गए हैं। अब सबको बाबा के सीसीटीवी कैमरे में आ जाने का डर है। क्योंकि, बाबा के आश्रम में जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगे हैं और रिपोर्टर्स की सारे हरकतें उसमें कैद हो सकती हैं।
लेकिन इसमें गलती किसकी है... रिपोर्टर्स की... या उनके बॉसेस की या फिर पुलिसवालों की? जाहिर सी बात है रिपोर्टर ने अपनी गरिमा खोई है। रिपोर्टर का काम होता है कवरेज करना... लेकिन किसी के सामान की क्षति पहुंचाए बिना। संवाददाताओं को बिलकुल ऐसे काम नहीं करने चाहिए जिससे केस बिगड़े। अपनी तरफ से खबर नहीं बनाई जानी चाहिए।

लेकिन सबसे ज्यादा जवाबदेही पुलिस की बनती है। एक भी पुलिसवाला बाबा के आश्रम में क्यों नहीं तैनात किया गया? क्यों पुलिस ने केस प्रॉपर्टी यानि अहम डायरियों को अपनी तफ्तीश में शामिल नहीं किया? क्यों बाबा की रिमांड पुलिस ने पहले ही नहीं ली

लेकिन सबसे ज्यादा जवाबदेही पुलिस की बनती है। एक भी पुलिसवाला बाबा के आश्रम में क्यों नहीं तैनात किया गया? क्यों पुलिस ने केस प्रॉपर्टी यानि अहम डायरियों को अपनी तफ्तीश में शामिल नहीं किया? क्यों बाबा की रिमांड पुलिस ने पहले ही नहीं ली... मीडिया में इतनी खबर उछलने के बाद पुलिस को रिमांड लेने का ख्याल आया ! ये पुलिसवाले तब कहां थे जब बाबा का सेक्स रैकेट उनके इलाके में फलफूल रहा था?
लेकिन रिपोर्टर्स की जबर्दस्त कवरेज के चक्कर के आगे दिल्ली पुलिस को भी झुकना पड़ा। मजबूरन बाबा की 5 दिन का रिमांड लेनी पड़ी और अब ढोंगी बाबा भीमानंद पर मकोका (Maharashtra control of organized crime act) लगाना पड़ा। फर्जी बाबा भीमानंद करीब 13 सालों से दिल्ली के खानपुर इलाके में रहस्यमयी गुफा में रहता रहा। अपने पाप को अंजाम देता रहा। लेकिन पुलिस को कानों कान खबर नहीं लगी...ये बात हजम नहीं होती है। और वो भी तब जब बाबा कई बार पहले पुलिस के हत्थे चढ़ चुका है... पहला 1997 में दिल्ली के ही लाजपत नगर में मसाज पार्लर की आड़ में जिस्मफरोशी के आरोप में पकड़ा गया। फिर दूसरी बार 2003 में नोएडा में सेक्स रैकेट के धंधे के चक्कर में पकड़ा गया। बावजूद इसके, 2003 से लेकर 2010 तक क्या दिल्ली पुलिस को बाबा की काली करतूत का पता नहीं चला? पिछले 7 सालों में बाबा ने अपने इस सेक्स रैकेट के धंधे को एक संगठित और कॉर्पोरेट तरीके से चलाना शुरू कर दिया था। करोड़ों रूपयों का स्वामी बन बैठा। बाबा के सेक्स रैकेट के अलावा कई धंधे हैं...वो एक सिक्योरिटी एंजेसी का मालिक है, चित्रकूट में 200 बिस्तर वाले हॉस्पिटल बनाने का प्रोजेक्ट था, खानपुर के मंदिर और आश्रम का मालिक, प्रॉपर्टी के बिजनेस से भी पैसे कमाता था। और सुनने में आया है कि वो अमेरिका के लॉसवेगास के किसी एनजीओ से भी 250 करोड़ रूपए ऐंठने वाला था।
हकीकत ये भी है कि अगर न्यूज चैनल्स के रिपोर्टर्स ने अपना ग्राउंड वर्क नहीं किया होता तो शायद दिल्ली पुलिस के अधिकारियों तक को ये तक पता नहीं चलता कि राजीव रंजन द्विवेदी उर्फ शिवानंद उर्फ शिवा द्विवेदी उर्फ भीमानंद एक बहुत बड़ी मछली है। पुलिस ने प्रेस-कॉन्फ्रेंस करके ये इस धूर्त बाबा के बारे में बता तो दिया लेकिन अगर एक न्यूज चैनल बाबा की रहस्यमयी गुफा में सबसे पहले ना पंहुचता तो शायद पुलिस उसके ठिकाने पर कभी नहीं जाती।

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