Thursday, June 24, 2010

सर्वश्रेष्ठ चैनल ने नहीं दिखाई 'श्रेष्ठता'

हमेशा सच दिखाने का ठीकरा फोड़ने वाला वो चैनल ,सच्चाई नहीं देख पा रहा था। सर्वश्रेष्ठ चैनल के लोग अपने इन्स्टीट्यूट में पढ़ने वाले बच्चों को किस मुंह से सिखाते होंगे कि रिपोर्टर को “BIASED” यानि एकपक्षीय (या पूर्वग्रसित) नहीं होना चाहिए। क्या 'सबसे तेज' होने का दम भरने वाला ये चैनल अपने छात्रों (और अपने रिपोर्टरों को) को ये सिखाता है कि अगर कोई रसूखदार या फिर अपना ही जानने वाला कोई शख्स लफड़े में फंस जाएं तो उसकी खबर मत दिखाओ...

"न्यूज चैनल पर एक विशेष खबर(स्टोरी) क्यों कवर की जाए...इसके अलग अलग क्राइटीरिया (मापदंड) होते हैं....मसलन इमोश्नल स्टोरी है या फिर खबर का विषय बहुत पावरफुल है... इसके तहत ही रिपोर्टर तय करता है कि खबर कवर करनी चाहिए या नहीं...। लेकिन टॉप मोस्ट न्यूज चैनल्स में प्रोफाइल पर भी बहुत ध्यान दिया जाता है। अगर पीड़ित परिवार या फिर आरोपी परिवार हाईप्रोफाइल है तो चैनल उस खबर को हाथों हाथ उठा लेते हैं। एक्सक्लूसिव खबर हो तो सोने पर सुहागा...। दिनभर एक मुहिम छेड़ दी जाती है। अक्सर न्यूज चैनल्स की मीटिंग में रिपोर्टर के मुंह से ये सुना जा सकता है “बहुत शानदार प्रोफाइल है सर”... खबर दिखा देंगे तो “हंगामा हो जाएगा” ....या फिर बॉस लोगों से ये सुना जा सकता है कि स्टोरी बहुत “लो-प्रोफाइल है...लीव इट…”
अगर किसी खबर में पीड़ित पक्ष बहुत कमजोर हो, लेकिन कानून पर उसको आशा हो, जबकि आरोपी पक्ष बहुत ही हाईप्रोफाइल हो, फिल्मी जगत के सबसे नामचीन परिवार से ताल्लुक रखता हो, उसके व्यापार की गिनती कभी अनिल अंबानी ग्रुप की तरह होती रही हो या फिर उसके अच्छे राजनीतिक संबंध हों तो ऐसे में क्या न्यूज चैनल और अखबारों को वो खबर ड्रॉप कर देनी चाहिए ? शायद नहीं। लेकिन देश के सर्वश्रेष्ठ चैनल के अलावा कई न्यूज चैनलों ने एक खबर में यही किया। न्यूज चैनल की बात अगर छोड़ दें तो नंबर 2 पर गिनती होने वाले अंग्रेजी अखबार (हिन्दुस्तान टाइम्स) ने भी यही किया। लेकिन बाद में उन्हें शायद इस बात का अहसास हुआ... तो उन्होंने खबर तो छापी लेकिन आरोपी के रसूख के चलते (शायद) उसका नाम स्टोरी से गायब कर दिया। रूचिका गिहरोत्रा, प्रियदर्शनी मट्टू, जेसिका लाल और बीएमड्बल्यू जैसी खबरों पर अगर मीडिया की मुहिम के चलते इंसाफ मिल सकता है तो दिल्ली के एक गरीब परिवार को क्यों मीडिया एकजुट होकर उन्हें इंसाफ नहीं दिला सकती ? अब आप सोच रहें होंगे कि ये खबर है कौन सी।
तो सुनिए दिलदहला देने वाली दास्तान है ड्राइवर जनेश्वर शर्मा की। वही जनेश्वर शर्मा जो पिछले 6 साल से दिल्ली के रसूखदार अरबपति अनिल नंदा की गाड़ी चलाता था। ये अनिल नंदा वही हैं, जिनकी रिश्तेदारी अमिताभ बच्चन के परिवार से है। ये वही अनिल नंदा है, जिनके पिता ने ना सिर्फ देश भर में बल्कि बाहर भी एस्कॉर्ट हॉस्पिटल एन्ड ग्रुप की नींव रखी। ये वही अनिल नंदा है जिनकी सालाना आय 200 करोड़ से ज्यादा है। देश विदेशों में इनके बिजनेस की तूती बोलती है। अब परिवार में बंटवारा हो गया है नहीं तो इनके परिवार की बराबरी एक वक्त में अंबानी परिवार से होती थी। लेकिन आजकल अनिल नंदा सुर्खियों में हैं। लेकिन अपने बिजनेस के लिए नहीं बल्कि ‘गे-गैंग’ के लिए कुछ चैनल की हेडलाइन्स बने हुए हैं। दरअसल ये संगीन आरोप उसी गरीब ड्राइवर जनेश्वर ने लगाया है जिसने कुछ ही दिनों पहले हॉस्पिटल में दम तोड़ दिया। जनेश्वर, अनिल नंदा के घर से लगभग 90 प्रतिशत जली हालत में हॉस्पिटल में एडमिट करवाया गया। लेकिन घरवालों की तमाम कोशिशों के बावजूद उसे बचाया नहीं जा सका।
मरने से पहले जनेश्वर, एक हिन्दी न्यूज चैनल (बधाई का पात्र है आईबीएन-7) के अलावा अपने भाई को भी वीडियो पर दे गया एक सनसनीखेज बयान। वीडियो पर रिकॉर्ड किए गए ये बयान मकतूल के आखिरी बयान थे। कहते हैं ना कि मरने से पहले आदमी झूठ नहीं बोलता। इसका मतलब कोर्ट की नजर में भी जनेश्वर के वो बयान बहुत महत्वपूर्ण हैं। मरने से पहले जनेश्वर ने अनिल नंदा पर “यौनाचार” के गंभीर आरोप लगाए हैं। “कमजोर और जरूरतमंद लड़कों को उसके घर पर लाया जाता और फिर चाहते या ना चाहते हुए उन लड़को के साथ घिनौना कृत्य किया जाता ।” ड्राइवर जनेश्वर पर भी ये सब करने पर दबाव बनाया जाता...बात यही खत्म नहीं होती। बहुत हाईप्रोफाइल लोग भी इस गे-गैंग में शामिल थे। जनेश्वर के घरवालों के मुताबिक उसको अनिल नंदा के इस घिनौने काम का पता चल गया था... और उसी दिन से इसे मुंह बंद रखने की धमकी दी जाती थी।
जनेश्वर ने कुछ दिनों पहले एक चिट्ठी लिखकर अपने घरवालों को इस बात बात से आगाह किया था कि उसकी अगर किसी संदिग्ध परिस्थिति में मौत होती है तो उसका जिम्मेदार अनिल नंदा ही होगा। जनेश्वर को जिस चीज की आशंका थी उसके साथ हुआ भी वही। तीन लोगों ने पेट्रोल डालकर उसे जला दिया। हफ्ते भर वो मौत से जूझता रहा। पुलिस ने जनेश्वर के बयान के आधार पर तीन अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया जिसे जनेश्वर की मौत के बाद में 302 यानि हत्या में तब्दील कर दिया।
अब बात आती है न्यूज चैनल और अखबारों की। शुरुआत में हिंदी के सिर्फ दो ही न्यूज चैनल और एक लीडिंग इग्लिश अखबार ने ही अनिल नंदा के खिलाफ खबर दिखाने की हिम्मत जुटाई। या यूं कहा जाए कि सिर्फ तीन ऑर्गनाइजेशन को इसके बारे में पता था। जिन्होंने स्टोरी को कवर करवाया और ऑन एयर किया। ऐसे भी न्यूज चैनल थे जिन्होंने खबर को जानते हुए भी अनदेखा कर दिया। अनदेखा इसलिए किया क्योंकि खबर अनिल नंदा से जुड़ी हुई थी। ये वही चैनल है जिसका मालिक एक बहुत बड़ा बिल्डर है। लेकिन जब न्यूज 24 से लेकर स्टार न्यूज और आईबीएन 7 तक ने ये खबर पीट डाली तो ‘डर-डर’ के उस बिल्डर के चैनल ने भी खबर एयर(चलाई) की। एक बिल्डर चैनल ने अपने मातहत कर्मचारियों (पत्रकार कहना पत्रकारिता की बेइज्जती होगी) को साफ हिदायत दे दी कि “ये खबर अपने चैनल पर बिल्कुल नहीं दिखनी चाहिए।” दरअसल, बिल्डर चैनल्स नहीं चाहते थे कि उनके बिरादरी के एक नामचीन शख्स का नाम खराब हो—अनिल नंदा का रियल स्टेट में भी एक बड़ा कारोबार है।

लेकिन सबसे ज्यादा शर्मनाक रहा 'सर्वश्रेष्ठ चैनल' का रवैया। उनके यहां खबर तो क्या एक टीकर (न्यूज चैनल के नीचे चलने वाले समाचारों की पट्टी) तक में ड्राइवर जनेश्वर की साथ हुई ना इंसाफी का जिक्र नहीं किया। लेकिन क्यों?

वो शायद इसलिए क्योंकि टीवी टुडे के मालिक की बहन (शेयर होल्डर) के पति कभी अनिल नंदा के पिता एच एल नंदा के एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में एक बड़े ओहदे पर थे। अब सवाल ये है कि 'सर्वश्रेष्ठ चैनल' का ये रवैया क्या ठीक था ? हमेशा सच दिखाने का ठीकरा फोड़ने वाला वो चैनल क्या सच्चाई नहीं देख पा रहा था। सर्वश्रेष्ठ चैनल के लोग अपने इन्स्टीट्यूट में पढ़ने वाले बच्चों को किस मुंह से सिखाते होंगे कि रिपोर्टर को “BIASED” यानि एकपक्षीय (या पूर्वग्रसित) नहीं होना चाहिए। क्या 'सबसे तेज' माने जाना वाला ये चैनल छात्रों (और अपने रिपोर्टरों को) को ये सिखाता है कि अगर कोई रसूखदार या फिर अपना ही जानने वाला कोई शख्स लफड़े में फंस जाएं तो उसकी खबर मत दिखाओ।
सर्वश्रेष्ठ चैनल के अलावा अपनी ‘खबरों’ के लिए विश्वसनीय माने जाने वाले एक हिंदी न्यूज चैनल पर भी ये खबर नदारद थी। ये चैनल वही है जिसे ‘बुद्धिजीवियों का चैनल माना जाता है और टैग लाइन है, 'जुंबा पर सच'। खाक है सच्चाई, यहां तो खबर ही नहीं दिखाई गई।
अब एक हिंदी न्यूज पेपर की भी कहानी सुनिए। जिस दिन से कुछ चैनल्स ने जनेश्वर की आवाज उठाई है उसी दिन से वो न्यूज पेपर जनेश्वर की मौत को खुदकुशी करार देने में जुटा है। आखिर वो अखबार क्यों फैसला सुनाने में लगा हुआ है। क्या उस अखबार के क्राइम रिपोर्टर और संपादक ये नहीं समझ पा रहे कि अगर जनेश्वर ने खुदकुशी की है तो उसके पास कोई वजह भी होनी चाहिए। बिना किसी वजह के कोई इंसान क्यों खुदकुशी करेगा। दूसरी बात ये है कि अगर जनेश्वर को खुदकुशी करनी ही थी तो फिर वो अनिल नंदा के घर ही खुद को क्यों जलाएगा ? जबकि वारदात वाले दिन जनेश्वर तैयार होकर रोज की तरह अपने ड्यूटी टाइम पर अनिल नंदा के घर पंहुचा। जनेश्वर की मौत आत्महत्या है या फिर हत्या, इसी झोल में फंसी है दिल्ली पुलिस। पुलिस ने जनेश्वर के बयान के आधार पर हत्या का मामला दर्ज कर लिया है और तफ्तीश जारी है। लेकिन इस घटना ने एक बार फिर मीडिया का वो चेहरा दुनिया के सामने लाकर खड़ा कर दिया है जो लोकतंत्र और सभ्य समाज में कतई बर्दाश्त करने लायक नहीं है। आरोपी कितना भी रसूखदार क्यों ना हो, सच्चाई को सामने लाना ही प्रेस का सबसे पहला (और अहम) दायित्व है। अगर आप ऐसा नहीं करते तो ये पत्रकारिता का अपमान नहीं तो और क्या है ?
(ये लेख मैने मीडिया पोर्टल मीडियामंच के लिए लिखा था)

देश-दुनिया