
"न्यूज चैनल पर एक विशेष खबर(स्टोरी) क्यों कवर की जाए...इसके अलग अलग क्राइटीरिया (मापदंड) होते हैं....मसलन इमोश्नल स्टोरी है या फिर खबर का विषय बहुत पावरफुल है... इसके तहत ही रिपोर्टर तय करता है कि खबर कवर करनी चाहिए या नहीं...। लेकिन टॉप मोस्ट न्यूज चैनल्स में प्रोफाइल पर भी बहुत ध्यान दिया जाता है। अगर पीड़ित परिवार या फिर आरोपी परिवार हाईप्रोफाइल है तो चैनल उस खबर को हाथों हाथ उठा लेते हैं। एक्सक्लूसिव खबर हो तो सोने पर सुहागा...। दिनभर एक मुहिम छेड़ दी जाती है। अक्सर न्यूज चैनल्स की मीटिंग में रिपोर्टर के मुंह से ये सुना जा सकता है “बहुत शानदार प्रोफाइल है सर”... खबर दिखा देंगे तो “हंगामा हो जाएगा” ....या फिर बॉस लोगों से ये सुना जा सकता है कि स्टोरी बहुत “लो-प्रोफाइल है...लीव इट…”
अगर किसी खबर में पीड़ित पक्ष बहुत कमजोर हो, लेकिन कानून पर उसको आशा हो, जबकि आरोपी पक्ष बहुत ही हाईप्रोफाइल हो, फिल्मी जगत के सबसे नामचीन परिवार से ताल्लुक रखता हो, उसके व्यापार की गिनती कभी अनिल अंबानी ग्रुप की तरह होती रही हो या फिर उसके अच्छे राजनीतिक संबंध हों तो ऐसे में क्या न्यूज चैनल और अखबारों को वो खबर ड्रॉप कर देनी चाहिए ? शायद नहीं। लेकिन देश के सर्वश्रेष्ठ चैनल के अलावा कई न्यूज चैनलों ने एक खबर में यही किया। न्यूज चैनल की बात अगर छोड़ दें तो नंबर 2 पर गिनती होने वाले अंग्रेजी अखबार (हिन्दुस्तान टाइम्स) ने भी यही किया। लेकिन बाद में उन्हें शायद इस बात का अहसास हुआ... तो उन्होंने खबर तो छापी लेकिन आरोपी के रसूख के चलते (शायद) उसका नाम स्टोरी से गायब कर दिया। रूचिका गिहरोत्रा, प्रियदर्शनी मट्टू, जेसिका लाल और बीएमड्बल्यू जैसी खबरों पर अगर मीडिया की मुहिम के चलते इंसाफ मिल सकता है तो दिल्ली के एक गरीब परिवार को क्यों मीडिया एकजुट होकर उन्हें इंसाफ नहीं दिला सकती ? अब आप सोच रहें होंगे कि ये खबर है कौन सी।
तो सुनिए दिलदहला देने वाली दास्तान है ड्राइवर जनेश्वर शर्मा की। वही जनेश्वर शर्मा जो पिछले 6 साल से दिल्ली के रसूखदार अरबपति अनिल नंदा की गाड़ी चलाता था।

मरने से पहले जनेश्वर, एक हिन्दी न्यूज चैनल (बधाई का पात्र है आईबीएन-7) के अलावा अपने भाई को भी वीडियो पर दे गया एक सनसनीखेज बयान। वीडियो पर रिकॉर्ड किए गए ये बयान मकतूल के आखिरी बयान थे। कहते हैं ना कि मरने से पहले आदमी झूठ नहीं बोलता। इसका मतलब कोर्ट की नजर में भी जनेश्वर के वो बयान बहुत महत्वपूर्ण हैं। मरने से पहले जनेश्वर ने अनिल नंदा पर “यौनाचार” के गंभीर आरोप लगाए हैं। “कमजोर और जरूरतमंद लड़कों को उसके घर पर लाया जाता और फिर चाहते या ना चाहते हुए उन लड़को के साथ घिनौना कृत्य किया जाता ।” ड्राइवर जनेश्वर पर भी ये सब करने पर दबाव बनाया जाता...बात यही खत्म नहीं होती। बहुत हाईप्रोफाइल लोग भी इस गे-गैंग में शामिल थे। जनेश्वर के घरवालों के मुताबिक उसको अनिल नंदा के इस घिनौने काम का पता चल गया था... और उसी दिन से इसे मुंह बंद रखने की धमकी दी जाती थी।
जनेश्वर ने कुछ दिनों पहले एक चिट्ठी लिखकर अपने घरवालों को इस बात बात से आगाह किया था कि उसकी अगर किसी संदिग्ध परिस्थिति में मौत होती है तो उसका जिम्मेदार अनिल नंदा ही होगा। जनेश्वर को जिस चीज की आशंका थी उसके साथ हुआ भी वही। तीन लोगों ने पेट्रोल डालकर उसे जला दिया। हफ्ते भर वो मौत से जूझता रहा। पुलिस ने जनेश्वर के बयान के आधार पर तीन अज्ञात लोगों के खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया जिसे जनेश्वर की मौत के बाद में 302 यानि हत्या में तब्दील कर दिया।
अब बात आती है न्यूज चैनल और अखबारों की।

लेकिन सबसे ज्यादा शर्मनाक रहा 'सर्वश्रेष्ठ चैनल' का रवैया। उनके यहां खबर तो क्या एक टीकर (न्यूज चैनल के नीचे चलने वाले समाचारों की पट्टी) तक में ड्राइवर जनेश्वर की साथ हुई ना इंसाफी का जिक्र नहीं किया। लेकिन क्यों?

वो शायद इसलिए क्योंकि टीवी टुडे के मालिक की बहन (शेयर होल्डर) के पति कभी अनिल नंदा के पिता एच एल नंदा के एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में एक बड़े ओहदे पर थे। अब सवाल ये है कि 'सर्वश्रेष्ठ चैनल' का ये रवैया क्या ठीक था ? हमेशा सच दिखाने का ठीकरा फोड़ने वाला वो चैनल क्या सच्चाई नहीं देख पा रहा था। सर्वश्रेष्ठ चैनल के लोग अपने इन्स्टीट्यूट में पढ़ने वाले बच्चों को किस मुंह से सिखाते होंगे कि रिपोर्टर को “BIASED” यानि एकपक्षीय (या पूर्वग्रसित) नहीं होना चाहिए। क्या 'सबसे तेज' माने जाना वाला ये चैनल छात्रों (और अपने रिपोर्टरों को) को ये सिखाता है कि अगर कोई रसूखदार या फिर अपना ही जानने वाला कोई शख्स लफड़े में फंस जाएं तो उसकी खबर मत दिखाओ।
सर्वश्रेष्ठ चैनल के अलावा अपनी ‘खबरों’ के लिए विश्वसनीय माने जाने वाले एक हिंदी न्यूज चैनल पर भी ये खबर नदारद थी। ये चैनल वही है जिसे ‘बुद्धिजीवियों का चैनल माना जाता है और टैग लाइन है, 'जुंबा पर सच'। खाक है सच्चाई, यहां तो खबर ही नहीं दिखाई गई।
अब एक हिंदी न्यूज पेपर की भी कहानी सुनिए। जिस दिन से कुछ चैनल्स ने जनेश्वर की आवाज उठाई है उसी दिन से वो न्यूज पेपर जनेश्वर की मौत को खुदकुशी करार देने में जुटा है। आखिर वो अखबार क्यों फैसला सुनाने में लगा हुआ है। क्या उस अखबार के क्राइम रिपोर्टर और संपादक ये नहीं समझ पा रहे कि अगर जनेश्वर ने खुदकुशी की है तो उसके पास कोई वजह भी होनी चाहिए। बिना किसी वजह के कोई इंसान क्यों खुदकुशी करेगा। दूसरी बात ये है कि अगर जनेश्वर को खुदकुशी करनी ही थी तो फिर वो अनिल नंदा के घर ही खुद को क्यों जलाएगा ? जबकि वारदात वाले दिन जनेश्वर तैयार होकर रोज की तरह अपने ड्यूटी टाइम पर अनिल नंदा के घर पंहुचा। जनेश्वर की मौत आत्महत्या है या फिर हत्या, इसी झोल में फंसी है दिल्ली पुलिस।

(ये लेख मैने मीडिया पोर्टल मीडियामंच के लिए लिखा था)
बहुत ही सटीक आलेख हिम्मत के साथ लिखा गया है। यह ब्लागिंग का ही कमाल है कि अब पत्रकारिता में फैल रहे भ्रष्टाचार को चुनौती मिल रही है। बधाई।
ReplyDeleteनलिनी जी कुछ समय बाद लोकतंत्र को बचाने के लिए पत्रकारों को जिंदा जलाना पड़ेगा...
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा लेख। पत्रकारिता का मतलब बदलता जा रहा है। पता नहीं भविष्य क्या होगा?
ReplyDeleteअब नैतिकताए ओर आदर्श भी चुन कर तय किये जाते है ....ओर फ़िल्टर करके अपनी सहूलियत मुताबिक उनका इस्तेमाल होता है ....
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